उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल एक दूसरे के पारंपरिक माने जाने वाले वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिशों को आकार देने में जुटे हैं। भाजपा की नजर मायावती के वोट बैंक पर है तो बहनजी मुलायम सिंह यादव के वोट बैंक में सेंधमारी का सब्जबाग पाले बैठी हैं। जबकि समाजवादी पार्टी इस वक्त अपना सब कुछ बचाने में जुटी है। पारिवारिक कलह के सार्वजनिक हो जाने के बाद अखिलेश सरकार का रिपोर्टकार्ड खास असरदार साबित होता नजर नहीं आ रहा है। जबकि कांग्रेस अभी भी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में है।
दलित वोट बैंक में सेंधमारी की पुरजोर कोशिशों में बरसों से जुटी भारतीय जनता पार्टी को डॉ भीमराव अंबेडकर बड़े अवसर की तरह नजर आ रहे हैं। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा के शून्य पर आउट हो जाने के बाद भाजपा नेता यह मानने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने की उनकी कोशिशें डॉ अंबेडकर के नाम के साथ खुद को जोड़ने से खासी आसान हो सकती हैं। अपने अंबेडकर प्रेम को आकार देने के लिए भाजपा के नेता प्रदेश भर में दलित बस्तियों में डॉ भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस, छह दिसम्बर, को पूरा दिन बिताने जा रहे हैं। चार साल से लगातार भाजपा ऐसा करती आ रही है। 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश में उसे मिली 71 सीटों की बड़ी वजह पार्टी के नेता दलितों का भाजपा के प्रति बढ़ता प्रेम मान रहे हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी से दलितों को जोड़ने के लिए पहले ही नारा ‘बाबा अंबेडकर का आशीर्वाद, चलो चलें मोदी के साथ’ दे चुके हैं। दलित बस्तियों में बढ़ती भाजपा की घुसपैठ से बहनजी सकते में हैं। इसीलिए वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दलित प्रेम को दिखाावा करार देने में जुटी हैं। बसपा के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि डॉ अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर बसपा के कार्यकर्ताओं को उत्तर प्रदेश की प्रत्येक दलित बस्ती में पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने और भाजपा से अपने मतदाताओं का मोह भंग करने का जिम्मा सौंपा गया है। अपना पारंपरिक वोट बैंक बचाने की कोशिशों में जुटीं मायावती समाजवादी पार्टी के पारंपरिक माने जाने वाले मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश में हैं। यही वजह है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में जल्द होने जा रहे विधानसभा चुनाव में डेढ़ सौ से अधिक मुस्लिम प्रत्याशी उतारने की रणनीति तैयार की है। बहनजी ने यह दांव इसलिए भी चला है क्योंकि उन्हें इस बात का इल्म है कि उत्तर प्रदेश की 403 में से 148 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता किसी भी राजनीतिक दल के प्रत्याशी की हार-जीत की तदबीर लिखता है। मायावती ने दो दिन पूर्व सपा और भाजपा के बीच के रिश्तों की नजीर पेश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र सैफई में यादव परिवार के एक समारोह में शिरकत करने की घटना को लेकर किया। इससे साफ है कि वे किसी भी हाल में समाजवादी पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी की हर कोशिश को चुनाव के पहले आजमा लेना चाहती हैं। रही बात कांग्रेस की, तो इस वक्त उसका पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन बचाने पर है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं, ‘कांग्रेस ने कभी वोट बैंक की राजनीति की ही नहीं।

कांग्रेस का पूरा ध्यान समाज के सभी वर्गों को उसका पूरा अधिकार दिलाने तक सीमित रहा है। उत्तर प्रदेश में पार्टी वही कर रही है।’ जबकि बसपा और सपा के वोट बैंक पर सेंधमारी की भाजपा की कोशिशों की बाबत पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश का विकास यहां के मतदाताओं की प्राथमिकता है। सपा-बसपा की सरकारों ने इस दिशा में वादे करने के अलावा कुछ नहीं किया। जनता भ्रष्टाचार पर वोट नहीं देती। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में ही दलित भाजपा के साथ जुड़ गया था। उसी का नतीजा रहा कि बसपा का लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला। अब बहनजी कितने भी जतन कर लें, दलित उनके साथ खड़ा होने वाला नहीं है क्योंकि उसे उनकी असलियत का अंदाजा हो चुका है।