बुलंदशहर के सामूहिक बलात्कार कांड को राजनीतिक साजिश बताने के उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री आजम खां के विवादास्पद बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। अदालत ने इस मामले में सीबीआइ जांच पर रोक लगाकर पूछा है कि क्या राज्य को ऊंचे पदों पर बैठे ऐसे लोगों को जघन्य अपराधों पर टिप्पणी करने देनी चाहिए। अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन को इस मामले में एमिकस क्यूरी (अदालत मित्र) नियुक्त किया है।सीबीआइ जांच का आदेश देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने पीड़ित परिवार की इन आशंकाओं को संज्ञान में लिया कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष जांच की संभावना नहीं लगती क्योंकि राज्य के एक मंत्री ने कथित तौर पर इस तरह का बयान दिया है। अदालत ने कहा, ‘इस बीच अंतरिम कदम के रूप में निर्देश दिया जाता है कि 30 जुलाई, 2016 की प्राथमिकी संख्या 0838 से संबंधित (सीबीआइ) जांच पर रोक रहेगी।’

पीठ ने मामले में जांच और सुनवाई को उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने की याचिका पर राज्य में शहरी विकास समेत कई विभागों को संभाल रहे आजम खां से और अखिलेश यादव सरकार से जवाब मांगा है। निर्णय के लिए कानूनी प्रश्न निर्धारित करते हुए पीठ ने कहा,‘जब कोई पीड़ित किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ बलात्कार-सामूहिक बलात्कार-हत्या या ऐसे किसी अन्य जघन्य अपराध का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दाखिल करे तो क्या उच्च पद पर बैठे किसी व्यक्ति को या सरकार में किसी प्रभारी को अपराध पर इस तरह का बयान देने की अनुमति होनी चाहिए कि यह राजनीतिक साजिश का नतीजा है, जबकि व्यक्ति के तौर पर उसका इस अपराध से कोई लेनादेना नहीं है।’यह जघन्य घटना 29 जुलाई की रात को घटी थी जब राजमार्ग पर लुटेरों ने नोएडा के एक परिवार की कार को रोका और बंदूक दिखाकर कार में से महिला और उसकी बेटी को निकालकर उनके साथ बलात्कार किया।

पीठ ने न्यायविद् और वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरीमन को इस मामले में एमिकस क्यूरी (अदालत मित्र) नियुक्त किया है। पीठ ने इस जैसे जघन्य मामलों में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच पर ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के बयानों के संभावित प्रभाव के संबंध में और अभिव्यक्ति की आजादी के संबंध में कुछ कानूनी प्रश्न निर्धारित किए। पीठ ने एक अन्य प्रश्न निर्धारित करते हुए कहा कि क्या राज्य, जो ‘नागरिकों का संरक्षक’ है, को ऐसे बयानों की अनुमति देनी चाहिए, जिनका इस तरह के मामलों में निष्पक्ष जांच पर असर पड़ सकता है या इनसे अविश्वास पैदा हो सकता है। पीठ ने कहा कि वह इस बात का अध्ययन करेगी कि इस तरह के बयान क्या किसी व्यक्ति की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में होते हैं।
याचिका को अब तीन सप्ताह बाद सुनवाई के लिए लिया जाएगा। जिस व्यक्ति की पत्नी और बेटी के साथ पिछले महीने बुलंदशहर में राजमार्ग पर बलात्कार हुआ था, उन्होंने 13 अगस्त को शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल कर मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की थी। पीड़ित परिवार ने आजम खां और कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घटना के मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दिया था और जांच पर निगरानी रखने का फैसला किया था। शीर्ष अदालत में दाखिल याचिका में पीड़ित लड़की के पिता ने मामले की सुनवाई ‘न्याय के हित में’ दिल्ली स्थानांतरित करने का आदेश देने की मांग की थी। उत्तर प्रदेश पुलिस से नाखुश याचिकाकर्ता ने कहा कि जांच किसी अन्य सक्षम एजंसी से कराई जानी चाहिए।

सामूहिक बलात्कार में राजनीतिक साजिश होने के खां के कथित विवादास्पद बयान का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए क्योंकि उनका बयान काफी हद तक पीड़ितों और उनके परिवार के सम्मान को ठेस पहुंचाता है। याचिका में पीड़ितों को समुचित क्षतिपूर्ति देने और राज्य व डीजीपी सहित अन्य को पीड़ितों के जीवन के मौलिक अधिकारों का हनन करने से रोकने का आदेश देने की मांग भी की गई है।