उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को तगड़ा झटका लग सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लखनऊ कैंट से विधायक व वरिष्ठ कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा जोशी भाजपा का दामन थाम सकती हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता, 2007 से 2012 के बीच यूपी कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा रही हैं। बहुगुणा राज्य में कांग्रेस का जाना-पहचाना ब्राह्मण चेहरा हैं जिनका मजबूत जनाधार है। हालांकि अटकलों पर रीता के भाई और भाजपा नेता विजय बहुगुणा का कहना है कि ‘ये बस एक अफवाह है, इसमें सच्चाई नहीं है।’ इससे पहले मई में भी जोशी के समाजवादी पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई गई थीं। तब रीता मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से अचानक मिलने जा पहुंची थी जिसके बाद चर्चाओं को बल मिला। हालांकि उन्होंने सपा का साथ नहीं दिया और कांग्रेस में ही रहीं। रीता बहुगुणा जोशी मूल रूप से समाजवादी पार्टी की नेत्री रही हैं। वह 1995-2000 के बीच इलाहाबाद से समाजवादी पार्टी की मेयर रही थीं। उन्होंने सुल्तापुर संसदीय क्षेत्र से सपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था। उनके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भी सपा में ही थे, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हुए। वर्मा ने 2014 में कांग्रेस की हार के बाद सपा का दामन थामा और राज्य सभा सीट पाने में कामयाब रहे।
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रीता ने दो बार लोकसभा चुनावों में ताल ठोंकी है, हालांकि उन्हें दोनों बार हार का स्वाद चखना पड़ा। 2012 में उन्होंने लखनऊ के कैंट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनावों में भी रीता ने हाथ आजमाया था, मगर उन्हें भाजपा के राजनाथ सिंह से शिकस्त हासिल करनी पड़ी।
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। जिनके लिए कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एक ब्राह्मण, शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। रीता भी इसी तबके से आती हैं, ऐसे में उनकी असंतुष्टि की एक वजह यह भी समझी जा सकती है।