पुत्र अखिलेश यादव की बगावत से निपटने के लिए, मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले ‘महागठबंधन’ को साथ लाने की तैयारी शुरू कर दी है। रविवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया ने जहां रालोद के नेता अजीत सिंह को फोन कर समर्थन मांगा, वहीं शिवपाल यादव ने एक वरिष्ठ जद(यू) नेता को फोन कर कहा कि सपा को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता है कि अगर नेताजी (मुलायम) अखिले श से सत्ता ले लें। शिवपाल ने कथित तौर पर कहा, ”नेताजी को अब आगे आना ही पड़ेगा। बिना नेताजी सीएम बने, न पार्टी बचेगी, न सरकार।” मुलायम और शिवपाल, दाेनों की ऐसे किसी महागठबंधन के संभावित नेताओं को फोन कर दावे कर रहे हैं कि यह सपा से निलंबित रामगोपाल यादव, जो कि अखिलेश के कैंप में हैं, ने बिहार चुनावों से पहले ऐसे किसी गठबंधन की योजना बर्बाद कर दी थी। मुलायम ने कथित तौर पर कांग्रेस की मंशा टोहने के लिए लोग भेजे हैं, हालांकि पार्टी अभी अपनी राय नहीं बना पाई है। सूत्रों ने कहा कि रामगोपाल भी कांग्रेस नेताआें से मिलकर पता लगा रहे हैं कि अखिलेश की कोशिशों का समर्थन करेगी या नहीं। जिस महागठबंधन को लेकर सपा विचार कर रही है, उसमें सपा, कांग्रेस, रालोद, जेडीयू और अन्य छोटे दल शामिल हैं।
सपा के झगड़े के पीछे अखिलेश की सौतेली मां? देखें वीडियो:
पार्टी सूत्रों ने कहा कि शिवपाल, अमर सिंह के अलावा कई ताकतवर पुरान समाजवादी चाहते हैं कि मुलायम अखिलेश की जगह लें। उनका आरोप है कि अखिलेश ने चुनावों में अकेले जाने का मन बनाया है और एक पंचलाइन भी तैयार कर ली है, ”मेरा परिवार उत्तर प्रदेश है।” मुलायम के समर्थकों का दावा है कि अखिलेश के गुट ने मुलायम व शिवपाल की तस्वीरों के बिना पोस्टर्स और हाेर्डिंग्स भी बटोर लिया है।
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शिवपाल ने रविवार को लखनऊ में रिपोर्टर्स को बताया कि पार्टी मुलायम के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। 77 साल के मुलायम सीएम के तौर पर वापसी नहीं करना चाहते, वह प्रकाश सिंह बादल और एम करुणानिधि की तरह सत्ता हाथ में रखना चाहते हैं, भले ही उससे थोड़े समय के लिए नुकसान हो। हालांकि अब सपा भी इस बात को महसूस कर रही है कि अखिलेश और शिवपाल के रूप में दो पावर सेंटर लंबे समय तक साथ नहीं चल पाएंगे।
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पुराने समाजवादियों की सोच है कि मुलायम को आगे आकर सपा के लिए वोट मांगने चाहिए, ‘ठेठ समाजवादी मतदाता’ ताकतवर पुराने पहलवान का साथ देगा। मुसलमानों के बीच में भी उनकी अच्छी पकड़ है, जो कि यूपी में महत्वपूर्ण वोट बैंक है। दूसरी तरफ, अखिलेश के करीबियों का कहना है कि वह भी तौल रहे हैं कि अपने पिता की छाया से निकल पाना उनके लिए संभव होगा या नहीं।