ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक का मंगलवार को निधन हो गया था। बुधवार को उनके जनाजे में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हुए। जाहिर सी बात है लोगों के मन में मौलान के प्रति बहुत लगाव था। वह मुस्लिमों की मॉडर्न एजुकेशन के समर्थक थे और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे। हालांकि कोरोना के चलते भीड़ पर रोक है बावजूद इसके उनकी यात्रा में जनसैलब उमड़ पड़ा। उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी नमाज-ए-जनाजा में पहुंचे। उनके पार्थिव शरीर को छोटे इमामबाड़े के पास गुफरान मॉब में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
पत्रकार कमाल खान ने मौलाना के जनाजे का वीडियो ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, ‘लखनऊ में मौलाना कल्बे सादिक़ का आखिरी सफर।यह वीडियो देखिए और सोचिए कि अगर कोरोना नहीं होता तो उनके जनाज़े में कितने लोग होते। ये मोहब्बत उनकी कमाई हुई है।’ इस वीडियो में सड़क लोगों से पटी नजर आ रही है।
मौलाना कि अंतिम यात्रा में महंत देव्यागिरी भी पहुंची थीं। मंगलवार को 83 साल के मौलाना का निधन हो गया था। वह 1 महीने से अस्पताल में भर्ती थे औऱ उन्हें कैंसर था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनके निधन पर दुख जताया। कल्बे सादिक अपने उदारवादी विचारों के लिए जाने जाते थे। इसकी वजह से उन्हें कहीं प्रशंसा तो कहीं आलोचना का भी सामना करना पड़ता था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ही स्नातक किया था और इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से तालीम हासिल की। यहां से एमए और पीएचडी की पढ़ाई की। उन्होंने तीन तलाक के खिलाफ भी अभियान चलाया था।
लखनऊ में मौलाना कल्बे सादिक़ का आखिरी सफर।यह वीडियो देखिए और सोचिए कि अगर कोरोना नहीं होता तो उनके जनाज़े में कितने लोग होते।ये मोहब्बत उनकी कमाई हुई है। pic.twitter.com/dvaEY6vOpv
— Kamal khan (@kamalkhan_NDTV) November 25, 2020
वह जीवनभर आपसी भाईचारे के लिए काम करते रहे। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनके अच्छे संबंध थे। अयोध्या विवाद के मामले में भी उनके विचार स्पष्ट थे। 90 के दशक में ही वह चाहते थे कि जमीन को मंदिर के लिए सौंप दिया जाए। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बाकी लोग राजी नहीं हुए। वह इस मुद्दे को हमेशा सुलझाने की ही कोशिश करते रहे।