सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी, हिरासत या कैद की वैधता से संबंधित बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर तुरंत ध्यान देने के साथ ही उस पर अविलंब निर्णय के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ से उस व्यक्ति की अर्जी पर चार सप्ताह में निर्णय करने के लिए कहते हुए कही जो कि अखिल भारत हिंदू महासभा का कार्यकारी अध्यक्ष है। उसे पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित तौर पर भड़काऊ भाषा में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए हिरासत में लिया गया है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की एक पीठ ने कहा, ‘हमारे विचार से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए और उस पर निर्णय के लिए अविलंब कदम उठाए जाने चाहिए। अत: हम आश्वस्त हैं कि हाई कोर्ट भी इससे अवगत होगा और वह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण चार सप्ताह में करेगा।’ पीठ ने कहा, ‘जब हम कहते हैं कि इसका निस्तारण चार सप्ताह में होना चाहिए तो इसका मतलब है कि मामले की सुनवाई होगी और फैसला उपरोक्त अवधि में सुनाया जाएगा।’
याचिकाकर्ता कमलेश तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी कि वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के निस्तारण के लिए उचित दिशानिर्देश तय करें। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया कि उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत अवैध हिरासत में रखा गया है। उन्होंने इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। तिवारी ने अपनी अर्जी में कहा कि उनके खिलाफ यह आरोप था कि उन्होंने बीते साल 30 नवंबर को हिंदू महासभा के लेटरहेड पर पैगंबर के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी। इसके चलते जन व्यवस्था को खतरा था। जिलाधिकारी ने उनके खिलाफ रासुका के प्रावधान लगाने के लिए उक्त बयान पर भरोसा किया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें बीते साल दिसंबर में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें जमानत दे दी गई थी लेकिन नौ दिसंबर 2015 को जिलाधिकारी ने उन्हें रासुका के तहत हिरासत में लेने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि मार्च 2016 में उन्होंने आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।
लेकिन याचिका अभी भी वहां लंबित है। उन्होंने साथ ही निर्देश देने की मांग की कि हाई कोर्ट में लंबित उनकी अर्जी का निस्तारण होने तक उन्हें अविलंब रिहा किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम उच्च न्यायालय से रिट याचिका का निस्तारण आज से चार सप्ताह में करने का अनुरोध करते हैं।’
