गंगा के तटवर्ती गांवों के किसान फ़रवरी शुरू होते ही गंगा की रेती में जायद की फसल के रूप में ककड़ी, खीरा, खरबूजा, तरबूज के साथ- साथ बहुतायत में सब्जी की खेती करते हैं, जिसकी आपूर्ति वह सुबह के समय चलने वाली रेलगाड़ियों से लखनऊ, कानपुर के अलावा इलाहाबाद, बाराबंकी तक में करते रहे हैं पर बीते दो सालों (कोरोना काल) में उनका यह व्यवसाय उन्नाव के गली मोहल्लों तक ही सीमित होकर रह गया है।

महामारी के दौरान तमाम परेशानियों के बावजूद सब्जियों की उपलब्धता हर किसी तक रही। अब तीसरे साल कोरोना से राहत मिलने पर मौसम की प्रतिकूलता किसानों पर कहर बनकर बरस रही है। उल्लेखनीय है कि उन्नाव की सीमा में ब्लाक गंजमुरादाबाद से लेकर सुमेरपुर तक लगभग 120 किलोमीटर की दूरी तक फैली गंगा नदी की रेती यहं के किसानों के लिए अब तक वरदान मानी जाती रही है। लेकिन बीते दो साल कोरोना महामारी तथा चालू साल में आग उगलता सूरज जायद की फसल के लिये मुसीबत बना हुआ है।

सब्जी उत्पादक मनोहर लाल, शिवकुमार, राजकुमार, रामचन्द्र, सकटे, हीरालाल, महादेव ने बताया कि  गंगा किनारे की गरमी किसान के साथ उनकी फ़सलों को भी झुलसा रही है, जिससे किसान को अब अपनी उपज की लागत भी निकलती नज़र नही आ रही है! बताते चले कि उन्नाव के किसान गंगा में  खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरोई, लौकी, करेला और कद्दू व तरबूज की खेती करते हैं।

इस बार मार्च में ही तापमान के उग्र रूप धारण कर लेने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं! प्रभावित किसानों की मानें तो जायद फसलों पर चिलचिलाती धूप का गहरा असर पड़ा है। दरअसल बक्सर, मनकापुर, ओसिया, बीघापुर, शुक्लागंज, परियर, रूपपुर चंदेला, गंगादासपुर, छतरापुर, मैला, नौबतगंज, जगतपुर,  माढ़ापुर, परशुरामपुर आदि  गंगा के कटरी क्षेत्र के गांवों में किसानों ने जायद की सैकड़ों बीघा फसल इस बार भी बोई है क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों की मानें तो मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के अंत तक इन क्षेत्रों से उत्पादित जायदवर्गीय फसलों में सब्जी के अलावा ककड़ी, खीरा, खरबूजा और तरबूज  किसानों की जेब को नकदी से लबरेज करती रही है लेकिन इस बार इनका उत्पादन अपेक्षा के अनुरूप शुरू नही हुआ है।

हालांकि होली तक किसान यही मानकर चल रहे थे कि इस बार अच्छी पैदावार होगी और वे लागत से अधिक कमाकर पिछले नुकसान की भरपाई कर सकेंगे, लेकिन अप्रैल की प्रचण्ड धूप में उनके अरमान स्वतः झुलस गये। गंगा की रेत में खेती करने वाले किसान फसल बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अपने प्रयासों में उन्हें सफलता नहीं मिल रही है।

कारोबारी किसान मददर व मुकीम का कहना है कि उन्होंने गर्मी से बचाने के लिए खेतों में पहले की अपेक्षा दोगुनी सिचाई की है लेकिन हर दूसरे दिन फसल के पत्ते सूखकर ऐंठ जाते हैं उनका कहना है कि फरवरी-मार्च में कुछ हदतक मौसम ठीक था और फसलें हरी दिख रही थीं। ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि इस बार अच्छी पैदावार होगी, लेकिन अचानक इस तरह से तापमान बढ़ने से सभी की ख्वाहिशें धराशायी हो गईं|

अप्रैल की चिलचिलाती धूप ने फसलों को समय से पहले ही झुलसा दिया है। किसानों का कहना है कि अगर धूप ऐसे ही होती रही तो जो फसल बची है वह भी झुलस जाएगी। जायद की फसलों पर क्रेडिट कार्ड के बलबूते पर दसियों हजार रुपये खर्च किये गए हैं ऐसे में अब कर्ज की भरपाई करने की चिंता सबको सता रही है।