उत्तर प्रदेश में एक दिव्यांग व्यक्ति प्रदीप गुप्ता को सरकारी डिग्री कॉलेज में चपरासी के पद पर नियुक्ति के लिए इंटरव्यू देने के लिए साइकिल चलाकर जाना पड़ा वहीं अब इलाहबाद ने इसे मनुष्य की गरिमा के विपरीत माना है और व्यक्ति को पांच लाख का मुआवजा देने को कहा है।

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “याचिकाकर्ता को यह बताने के लिए मुआवजे की राशि प्रदान की गई है ताकि यह पता चले कि राज्य को अपने नागरिक और उसकी दुर्दशा को सुनने और समझने में समय लग सकता है, लेकिन यह न तो बहरा है और न ही हृदयहीन है। नागरिक राज्य के जितने बड़े दिल से ही काम करता है। जब तक दिल स्वतंत्र रूप से नहीं धड़कता, तब तक अस्तित्व नहीं पनप सकता।”

लॉ वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि राज्य अपने ‘विशेष नागरिक’ को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी था, जिसकी गरिमा का उल्लंघन किया गया था। राज्य के अधिकारियों के कहने पर दिव्यांग को अपमानित किया गया था जबकि उसकी कोई गलती नहीं थी। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य और उसके पदाधिकारी उसकी रक्षा करने में विफल रहे हैं और अपमान का कार्य संविधान के जनादेश के खिलाफ था।

बता दें कि 56 वर्षीय याचिकाकर्ता जो 50% लोकोमोटर डिसऑर्डर से पीड़ित है, उसने सहारनपुर के एक सरकारी डिग्री कॉलेज में लाइब्रेरी चपरासी के पद के लिए आवेदन किया था। उस पद के लिए निर्धारित आवश्यक योग्यता कक्षा पांच पास और साइकिल चलाने की थी।

प्रदीप गुप्ता को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था हालांकि साक्षात्कार में याचिकाकर्ता का मूल्यांकन नहीं किया गया क्योंकि वह साइकिल नहीं चला सकते थे। हालांकि वह trycycle चला सकते थे। इसके बाद हाई स्कूल की उच्च शैक्षणिक योग्यता (पुस्तकालय चपरासी के पद के लिए) की मांग की गई और चूंकि याचिकाकर्ता के पास वह योग्यता नहीं थी, इसलिए उसे बाहर कर दिया गया।

हालांकि याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों के उल्लंघन का दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया और अपने अपमान का आरोप लगाया ये आरोप उसने मुख्य रूप से सरकारी डिग्री कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य पर लगाया, जिन्होंने उनका साक्षात्कार लिया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 1995 के तहत उसके विशेष अधिकारों का पूर्ण उल्लंघन किया गया है।