उत्तर प्रदेश की 2 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को जीत हासिल हुई। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती थी, वहां पर बीजेपी ने जीत हासिल की। आजमगढ़ से 2019 में अखिलेश यादव सांसद चुने गए थे। लेकिन उनके इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट पर उनके भाई को बीजेपी के निरहुआ ने हरा दिया। आजमगढ़ की हार के बाद समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के नेतृत्व पर कई सवाल उठ रहे हैं।
आजमगढ़ लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं और 5 में से 3 विधानसभा सीटों पर बीजेपी उपचुनाव में आगे रही। आजमगढ़ के गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र में सपा आगे रही और गोपालपुर विधानसभा क्षेत्र में सपा के धर्मेन्द्र यादव को 61,150 वोट मिले जबकि बीजेपी के दिनेश लाल यादव को 59,854 वोट मिले। वहीं बसपा के गुड्डू जमाली को 48,389 वोट मिले।
सगड़ी विधानसभा क्षेत्र में सपा के धर्मेन्द्र यादव को 53,059 वोट मिले जबकि बीजेपी के दिनेश लाल यादव को 59,278 वोट मिले। वहीं बसपा के गुड्डू जमाली को 48,781 वोट मिले। मुबारकपुर विधानसभा सीट से सपा के धर्मेन्द्र यादव को 58,684 वोट मिले जबकि बीजेपी के दिनेश लाल यादव को 51,670 वोट मिले। वहीं बसपा के गुड्डू जमाली को 67,849 वोट मिले। मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र से ही गुड्डू जमाली विधायक चुने जा चुके हैं और 2022 के चुनाव में भी यहीं से लड़े थे लेकिन हार गए थे।
आजमगढ़ सदर विधानसभा सीट से बीजेपी को बड़ी बढ़त हासिल हुई। यहां पर पिछले कई बार से सपा विधानसभा चुनाव जीतती आ रही है। लेकिन लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी यहां पर सपा से काफी आगे रही। इस सीट पर सपा के धर्मेन्द्र यादव को 68,579 वोट मिले जबकि बीजेपी के दिनेश लाल यादव को 74,976 वोट मिले। वहीं बसपा के गुड्डू जमाली को 49,107 वोट मिले। वहीं आखिरी सीट मेंहनगर से सपा के धर्मेन्द्र यादव को 62,365 वोट मिले जबकि बीजेपी के दिनेश लाल यादव को 66,354 वोट मिले। वहीं बसपा के गुड्डू जमाली को 51,980 वोट मिले।
अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 5 में से केवल 1 विधानसभा सीट पर सपा आगे रही। जबकि 1 विधानसभा सीट पर बसपा आगे रही। वहीं बीजेपी 3 विधानसभा सीटों पर आगे रही। विधानसभा चुनाव के दौरान पांचों सीटों पर सपा की जीत हुई थी। आजमगढ़ की गोपालपुर विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी को करीब 1200 वोटों की बढ़त हासिल हुई और अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा बच पाई। बाकी चार सीटों पर समाजवादी पार्टी पीछे ही रही।