उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में नौकरशाहों का एक अजीबो-गरीब कारनामा देखने को मिला है। नौकरशाहों ने एक जिंदा इंसान को कागजों में मृत घोषित कर दिया। अब वे बुर्जुग अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए एक जगह से दूसरे जगह चक्कर लगा रहे हैं। आउटलुक की एक रिपोर्ट के अनुसार, बुर्जुग काले बोर्ड पर चॉक से ‘मैं जिंदा हूं’ लिखकर घूम रहे हैं ताकि लोग उन्हें भूत न समझें। बुजुर्ग व्यक्ति का नाम है बैजनाथ। यदि कोई उनसे पूछता है कि क्या वह जिंदा है, इस पर वे जोर से जवाब देते हैं। कहते हैं कि मैं भूत नहीं हूं और न हीं अफ्रीका से आया हूं।
कानूनी मौत का मतलब होता है अपनी डरावनी जिंदगी के लिए तैयार रहना। कानूनी मौत का मतलब- कागज में मौत। यह कैसे हुआ बताते है। दरअसल, कंप्यूटर के उपयोग से पहले आदमी जिंदा है या उसकी मौत हो गई, कागज पर प्रमाणित किया जाता था। लोगों जन्म लेते थे और जिंदा होते थे और फिर उनकी मृत्यु होती थी, वह सब एक रजिस्टर में मेंटेंन होता था। वहीं संपत्ति का लेखाजोखा एक अच्छे कागज पर होता था, जिसे रखने या मिटाने का काम ‘लेखपाल’ करते थे। उसका मुख्य काम भूमि अभिलेख और राजस्व विभाग का होता था। लेकिन कभी कभी वह मृत्यु के दूत के रूप में भी काम करते थे।
वैधनाथ एक थोड़ा पढ़े लिखे दलित किसान है, जिसकी करीब एक एकड़ से भी कम जमीन आजमगढ़ गांव में है। कुछ साल पहले एक अनजान लेखपाल ने उसका मृत्यु प्रमाणपत्र बना दिया। जबकि वैधनाथ पांडेय नामक एक ब्रहाम्ण की मौत ह़ई थी। इसके बाद लेखपाल ने पांडेय के उत्तराधिकारी उनके बेटे बचस्पति और त्रिवेणी के नाम को उस रिकाॅर्ड में लिख दिया जो जीवित वैद्यनाथ के नाम पर था। अब जीवित बैजनाथ को पता नहीं था कि उन्हें अब जिंदा नहीं माना जाएगा। लेखपाल ने यह जांचने के लिए एक उस जगह का दौरा नहीं किया ताकि यह पता चल सके कि जिसकी मृत्यु के बाद उसने उत्तराधिकारी का नाम दर्ज किया, वह सही है या नहीं? जब बचस्पति और त्रिवेणी ने उस आधे एकड़ जमीन को बेचने की कोशिश की तब वैजनाथ को उसकी कानूनी मौत के बारे में पता चला। हर जगह से थक हारकर आखिरकार वे कोर्ट पहुंचे। यहां उनके वकील ने उन्हें मृतक संघ (मृतकों का समूह) से संपर्क करने को कहा। यह वे हैं जो पूरे देश में पाए जाते हैं और एक तरह से जांबि हैं जिनकी संख्या देश में करीब 10 हजार है और वे खुद को जिंदा साबित करने में जुटे हैं।

