उत्तर प्रदेश समेत देश के 12 राज्यों में चुनाव आयोग स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया करवा रहा है। इसको लेकर विपक्ष हंगामा कर रहा है। इस बीच बरेली से एक दिलचस्प मामला सामने आया है। SIR कई लोगों के जीवन में खुशियां भी ला रहा है। लव मैरिज के चलते परिवार से कट चुके बरेली के कई युवाओं के लिए एसआईआर अप्रत्याशित रूप से रिश्तों को जोड़ने वाला सेतु बन गया है। मतदाता सूची की जानकारी जुटाने की प्रक्रिया ने कई ऐसे लोगों को वर्षों बाद अपने परिजनों से संपर्क करने के लिए मजबूर किया, जो घर से अलग होकर बिल्कुल नया जीवन जी रहे थे।
स्नेहलता ने की परिवार से बात
बरेली शहर के जोगी नवादा की 40 वर्षीय स्नेहलता इसका उदाहरण हैं। करीब पंद्रह साल पहले वह अपने प्रेमी ओमकार चौधरी के साथ चली गई थीं। परिवार ने एफआईआर दर्ज कराई, लेकिन स्नेहलता ने अदालत में प्रेमी के पक्ष में बयान दे दिए थे और फिर अपने पति के साथ चली गई थीं। उसके बाद मायके वालों से पूरी तरह बोलचाल बंद हो गई। एसआईआर के दौरान जब अधिकारियों ने उनसे 2003 की मतदाता सूची पर आधारित ‘एपिक आईडी’ मांगी, तो उन्हें अपने माता-पिता का ध्यान आया और वर्षों बाद उन्होंने घर फोन कर जरूरी विवरण मांगा।
उप जिला निर्वाचन अधिकारी /अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) के अनुसार एसआईआर के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें प्रेम विवाह करके घर छोड़ने वाले युवक-युवतियों को अपने पैतृक दस्तावेजों की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने बताया कि हालांकि प्रक्रिया सुचारू है और निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर अधिकांश जानकारी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि यदि विवरण उपलब्ध नहीं हैं, तो आवेदक एसआईआर गणना प्रपत्र में तीसरे विकल्प का चयन कर सकते हैं।
लोगों के जीवन में खुशियां ला रहा SIR
एसआईआर में लगे बूथ स्तरीय अधिकारियों के पास ऐसे कई मामले आए, जिनमें प्रेम विवाह कर घर छोड़ने वाली युवतियां मायके वालों से बात करने को मजबूर हुईं। फरीदपुर में रहने वाली सुलेखा उर्फ रिहाना भी वर्षों बाद अपने परिजनों से बात करने को मजबूर हुईं। बुलंदशहर की निवासी सुलेखा लगभग दस साल पहले नवाब हसन के साथ रहने आई थीं। निकाह के बाद वह रिहाना बन गईं और अब उनके दो बच्चे हैं। मायके वालों से उनका कोई संपर्क नहीं था। एसआईआर के फॉर्म में जब पिता की मतदाता क्रमांक संख्या और 2003 की सूची से जुड़े विवरण मांगे गए, तो रिहाना को कुछ भी याद नहीं था। अंततः उन्होंने अपनी मां को फोन किया। कॉल उठते ही दोनों की आवाज़ें रुंध गईं और वर्षों पुरानी दूरी पिघलने लगी।
जिला प्रशासन के अनुसार नगर पंचायत ठिरिया निजावत खां में 80 प्रतिशत मुस्लिम और 20 प्रतिशत हिंदू आबादी रहती है। यहां के कई युवक विभिन्न राज्यों और संप्रदायों की युवतियों से प्रेम विवाह कर चुके हैं। एसआईआर शुरू होने के बाद पैतृक पते, मूल निवास और पहचान से जुड़े दस्तावेज जुटाना उनके लिए चुनौती बन गया है, लेकिन इसी प्रक्रिया ने परिवारों से फिर से संवाद की राह भी खोल दी है। बिथरी चैनपुर विधानसभा क्षेत्र के ग्राम खेड़ा के रामवीर सिंह ने बताया कि उनका बेटा अवधेश दस साल पहले गांव की ही लड़की के साथ भाग गया था और तब से उसका कोई पता नहीं था। रामवीर सिंह ने बताया, “अचानक भावनगर (गुजरात) से अवधेश का फोन आया। अवधेश और उसकी पत्नी ने वर्षों बाद बहुत विनम्रता से बात की। अवधेश अब दो बच्चों का पिता है। उसने मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए 2003 की सूची का विवरण मांगा।”
आंवला संसदीय क्षेत्र के बिलपुर निवासी केशव की बेटी भी नौ साल पहले अपने मामा के लड़के के साथ चली गई थी। उन्होंने बताया कि रिश्तेदारों के समझाने के बाद भी दोनों नहीं माने और फोन नंबर तक बदल दिए। उन्होंने बताया कि एसआईआर की जानकारी जुटाने के लिये वर्षों बाद बेटी ने अचानक फोन किया। केशव ने कहा कि बेटी की आवाज़ सुनकर उसकी मां फूट-फूटकर रो पड़ी। जिले के अधिकारियों के अनुसार एसआईआर ने अचानक कई परिवारों को फिर से मिला दिया है, क्योंकि पुरानी मतदाता सूची में मतदाता का नाम और क्रमांक ढूंढने की वजह से वर्षों से दूर रह रहे लोगों को परिवार वालों से फिर से संपर्क करना पड़ा है।
