चंडीगढ़ प्रशासन अब गृह मंत्रालय की मंज़ूरी के बिना एक पैसा भी खर्च नहीं कर सकता। हाल ही में जारी एक आदेश के अनुसार, सभी नए कार्यों, परियोजनाओं या स्कीमों की मंज़ूरी अब गृह मंत्रालय (MHA) से लेनी होगी। यह अधिकार पहले केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के पास था।
चंडीगढ़ के वित्त सचिव दीप्रवा लाकड़ा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह आदेश किसी भी चल रहे कार्य को प्रभावित नहीं करेगा बल्कि सभी नए कार्यों पर लागू होगा। उन्होंने स्पष्ट किया, “यह सभी नई योजनाओं या आने वाली परियोजनाओं के लिए है, चाहे वह नई इमारत हो या सड़क। हालांकि, यह किसी भी चल रहे कार्य या छोटे-मोटे मरम्मत कार्यों के लिए नहीं है। आदेश में नई योजनाओं या नई परियोजनाओं का ज़िक्र है।” वित्तीय मंज़ूरी के बारे में पूछे जाने पर वित्त सचिव ने कहा कि अगर कोई नई परियोजना या योजना 10 लाख रुपये की भी है तो भी गृह मंत्रालय से मंज़ूरी लेनी होगी।
अधिकारियों का कहना- उनकी फाइलें गृह मंत्रालय में अटक जाएंगी
चंडीगढ़ इंजीनियरिंग विंग के अधिकारियों ने कहा कि इन निर्देशों ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया है क्योंकि उन्हें डर है कि लाखों रुपये के छोटे-मोटे कामों के लिए भी उनकी फाइलें गृह मंत्रालय में अटक जाएंगी। यूटी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इस आदेश से छोटे-मोटे काम भी प्रभावित होंगे, बड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन की तो बात ही छोड़ दीजिए। गृह मंत्रालय में फाइलें जमा होती रहेंगी और चंडीगढ़ में काम प्रभावित होगा।”
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पिछले सप्ताह अपने आदेशों में, गृह मंत्रालय ने वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन नियम (DFPR), 2024 के नियम 12(2) का हवाला देते हुए निर्दिष्ट किया कि ऐसी शक्तियों को केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों या उनके विभागों को पुनः प्रत्यायोजित नहीं किया जा सकता। अब तक, चंडीगढ़ के अधिकारियों के पास परियोजनाओं को प्रशासनिक मंज़ूरी देने या टेंडर आवंटित करने का अधिकार था। नहीं तो, कोई भी बड़ी परियोजना अप्रूवल के लिए मुख्य सचिव के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के पास जाती थी।
अधिकारियों ने की मंत्रालय के आदेश की समीक्षा की मांग
इंजीनियरिंग विंग के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “बहुत सारे काम पेंडिग हैं। गृह मंत्रालय की मंज़ूरी के बिना हम एक नई सड़क या एक नई इमारत भी नहीं बनवा सकते। हमने वरिष्ठ अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वे इस मामले को मंत्रालय के समक्ष उठाएं और आदेश की समीक्षा की मांग करें।”
आर्किटेक्ट सुरिंदर बहगा ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि चंडीगढ़ पहले से ही नौकरशाही के हाथों परेशान है और यह फैसला “नागरिक-हितैषी शासन मॉडल” बिल्कुल नहीं है। उन्होंने आगे कहा, “अधिकारियों से अधिकार छीनने से लालफीताशाही बढ़ेगी और निवासियों की परेशानियां बढ़ेंगी। इस व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की ज़रूरत है।”