उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के गठबंधन पर सियासी गलियारों में उथल-पुथल अब भी जारी है। राज्य की 80 सीटों में से 76 सीटें तो सपा और बसपा आपस में बांट चुकी हैं। गठबंधन में जगह बनाने के लिए राष्ट्रीय लोक दल का संघर्ष अब भी बरकरार है। इसी हफ्ते में आरएलडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से दूसरी बार मिल चुके हैं। दोनों ही बार उन्होंने जो बयान दिया उनसे साफ है कि उनकी अपेक्षा के मुताबिक सीटों को लेकर जद्दोजहद जारी है।
सीटों के सवाल पर यूं टाल गए जयंतः बुधवार को लखनऊ में हुई मुलाकात के बाद जयंत ने कहा, ‘अखिलेश यादव के साथ बातचीत अच्छी रही। सीटों को लेकर कोई बात नहीं हुई। मसला सीटों का नहीं है बल्कि विश्वास और रिश्तों का है जो काफी गहरा है। पहले जो बातें हुई हैं उनको और आगे बढ़ाया गया है। लड़ाई मैं की नहीं हम की है, हम मिलकर लड़ेंगे।’ जयंत ने कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि वहां मिलकर लड़े थे, तालमेल सफल रहा और इस बार भी सफलता मिलेगी।
गठबंधन में आरएलडी क्यों महत्वपूर्णः लोकसभा चुनाव के लिहाज से सपा-बसपा के बंटवारे के बाद चार सीटें बची हैं। कांग्रेस पहले ही सभी 80 सीटों पर अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकी है। सपा-बसपा दोनों जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल का अब भी अच्छा खासा वजूद है। किसानों के मुद्दे पर गठबंधन को आरएलडी से और मजबूती मिल सकती है। चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे अजीत सिंह और जयंत चौधरी के दम पर यहां भाजपा और कांग्रेस को दी जा रही चुनौती को और मजबूत किया जा सकता है।
आरएलडी के लिए अब ऐसी संभावनाएंः सपा-बसपा के बंटवारे के बाद राज्य में सिर्फ चार सीटें बची हैं। इनमें से अमेठी और रायबरेली में गठबंधन कांग्रेस को वॉकओवर देने के मूड में दिख रहा है। ऐसे में सिर्फ दो सीटें ही बच रही हैं। पहले माना जा रहा था कि आरएलडी छह सीटों पर चुनाव लड़ सकती है लेकिन अब चार सीटों पर बात पक्की होने की संभावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि आरएलडी को बागपत, मुजफ्फरनगर, मथुरा और हाथरस पर मौका दिया जा सकता है। इनमें से एक सीट पर सपा अपने प्रत्याशी को आरएलडी के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतार सकती है। अब देखना होगा कि चार सीटों के लिए कैसे जगह बनती है।
