सुप्रीम कोर्ट से पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को बड़ा झटका लगा है। उन्नाव रेप कांड में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कुलदीप सेंगर की जमानत पर फैसला सुनाया और हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि इस मामले में पीड़िता की उम्र 16 साल से कम थी, इसलिए अपराध की गंभीरता और बढ़ जाती है। वहीं कोर्ट के फैसले के बाद कुलदीप सेंगर की बेटी इशिता सेंगर ने सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म X पर भारत के संस्थानों के नाम चिट्ठी लिखी।
कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी का पत्र
कुलदीप सिंह सेंगर की बेटी इशिता सेंगर ने X पर एक पोस्ट में लिखा, “मैं यह पत्र एक बेटी के तौर पर लिख रही हूं, जो थक चुकी है, डरी हुई है और धीरे-धीरे अपना विश्वास खो रही है, लेकिन फिर भी उम्मीद से जुड़ी हुई है क्योंकि अब कहीं और जाने की जगह नहीं बची है। आठ साल से मैं और मेरा परिवार इंतज़ार कर रहे हैं। चुपचाप सब्र से। यह मानते हुए कि अगर हम सब कुछ सही तरीके से करेंगे, तो सच आखिरकार खुद सामने आ जाएगा। हमने कानून पर भरोसा किया। हमने संविधान पर भरोसा किया। हमने भरोसा किया कि इस देश में न्याय शोर, हैशटैग या जनता के गुस्से पर निर्भर नहीं करता। आज मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि वह विश्वास टूट रहा है। मेरे शब्द सुने जाने से पहले ही मेरी पहचान एक लेबल तक सीमित कर दी गई है—एक बीजेपी विधायक की बेटी। जैसे कि यह मेरी इंसानियत को खत्म कर देता है। जैसे कि सिर्फ़ इसी वजह से मैं निष्पक्षता, गरिमा, या बोलने के अधिकार की भी हकदार नहीं हूं। जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, कभी कोई दस्तावेज़ नहीं पढ़ा, कभी कोई कोर्ट रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं है।”
कहा गया कि सिर्फ़ ज़िंदा रहने के लिए रेप किया जाना चाहिए- सेंगर की बेटी
इशिता सेंगर ने कहा कि इन सालों में मुझे सोशल मीडिया पर अनगिनत बार कहा गया है कि मुझे सिर्फ़ ज़िंदा रहने के लिए रेप किया जाना चाहिए, मार दिया जाना चाहिए, या सज़ा दी जानी चाहिए। यह नफ़रत काल्पनिक नहीं है। यह रोज़ की है। यह लगातार है। और यह आपके अंदर कुछ तोड़ देती है जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के भी लायक नहीं हैं। इशिता ने कहा कि हमने चुप्पी इसलिए नहीं चुनी क्योंकि हम शक्तिशाली थे, बल्कि इसलिए कि हमने संस्थानों पर भरोसा किया। उन्होंने कहा कि हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किए, हमने टेलीविज़न डिबेट में चिल्लाया नहीं, हमने पुतले नहीं जलाए या हैशटैग ट्रेंड नहीं किए, हमने इंतज़ार किया क्योंकि हमें विश्वास था कि सच को तमाशे की ज़रूरत नहीं होती।
चुप्पी की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी?- सेंगर की बेटी ने पूछा
इशिता ने कहा कि उस चुप्पी की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी? उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, “हमारी गरिमा को धीरे-धीरे छीन लिया गया है। हमें आठ साल तक हर दिन गाली दी गई, मज़ाक उड़ाया गया, और अमानवीय बनाया गया। हम आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं, एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस भागते हुए, चिट्ठियां लिखते हुए, फ़ोन करते हुए, सुने जाने की भीख मांगते हुए। ऐसा कोई दरवाज़ा नहीं था जिस पर हमने दस्तक न दी हो। ऐसा कोई अधिकारी नहीं था जिसके पास हम न गए हों। ऐसा कोई मीडिया हाउस नहीं था जिसे हमने न लिखा हो। और फिर भी किसी ने नहीं सुना। इसलिए नहीं कि तथ्य कमज़ोर थे। इसलिए नहीं कि सबूतों की कमी थी। बल्कि इसलिए कि हमारा सच असुविधाजनक था। लोग हमें शक्तिशाली कहते हैं। मैं आपसे पूछती हूं कि किस तरह की शक्ति एक परिवार को आठ साल तक आवाज़हीन रखती है? किस तरह की पावर का मतलब है रोज अपना नाम बदनाम होते देखना, जबकि आप चुपचाप बैठे रहते हैं, एक ऐसे सिस्टम पर भरोसा करते हुए जो आपकी मौजूदगी को भी मानने को तैयार नहीं है? आज मुझे सिर्फ़ अन्याय से नहीं, बल्कि डर से डर लगता है। एक ऐसा डर जिसे जानबूझकर पैदा किया गया है। एक ऐसा डर जो इतना ज़ोरदार है कि जज, पत्रकार, संस्थाएं और आम नागरिक सभी चुप रहने पर मजबूर हो जाते हैं। एक ऐसा डर जिसे यह पक्का करने के लिए बनाया गया है कि कोई भी हमारे साथ खड़े होने की हिम्मत न करे, कोई हमारी बात सुनने की हिम्मत न करे, और कोई यह कहने की हिम्मत न करे, चलो तथ्यों को देखते हैं।”
मैं अंदर तक हिल गई हूं- इशिता
इशिता सेंगर ने आगे कहा, “यह सब होते देखकर मैं अंदर तक हिल गई हूं। अगर सच्चाई को गुस्से और गलत जानकारी से इतनी आसानी से दबाया जा सकता है, तो मुझ जैसे लोग कहां जाएंगे। अगर दबाव और लोगों का गुस्सा सबूतों और सही प्रक्रिया पर हावी होने लगे, तो एक आम नागरिक के पास सच में क्या सुरक्षा है? मैं यह चिट्ठी किसी को धमकी देने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं यह चिट्टी सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि मैं बहुत डरी हुई हूं और क्योंकि मुझे अब भी विश्वास है कि कोई, कहीं, इतना ध्यान ज़रूर देगा कि हमारी बात सुने। हम कोई एहसान नहीं मांग रहे हैं। हम इसलिए सुरक्षा नहीं मांग रहे हैं कि हम कौन हैं। हम न्याय मांग रहे हैं क्योंकि हम इंसान हैं। कृपया कानून को बिना किसी डर के बोलने दें। कृपया सबूतों की जांच बिना किसी दबाव के होने दें। कृपया सच्चाई को सच्चाई माना जाए, भले ही वह लोकप्रिय न हो।”
इशिता सेंगर ने कहा कि मैं एक बेटी हूं जिसे अब भी इस देश पर विश्वास है। कृपया मुझे इस विश्वास पर पछतावा न करवाएं। इशिता ने आगे लिखा कि एक बेटी जो अब भी न्याय का इंतज़ार कर रही है। पढ़ें कुलदीप सेंगर को नहीं मिलेगी जमानत
