Uniform Civil Code Bill: उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार को समान नागरिक संहिता विधेयक पारित होने की संभावना है। यह विधेयक मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा विधानसभा में पेश किया गया था। हालांकि, विपक्ष के भारी हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया था। आज सदन में फिर से चर्चा शुरू हो गई है। इस विधेयक को सदन से मंजूरी मिलने की उम्मीद है क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा के पास 70 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटें हैं।
उत्तराखंड विधानसभा में विपक्ष पार्टियों के विधायकों ने समान नागरिक संहिता बिल को लेकर काफी सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष के एक विधायक ने सरकार से सवाल करते हुए कहा किअगर राज्य का कोई व्यक्ति उत्तराखंड के बाहर लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा है तो ऐसे में क्या किया जाएगा क्योंकि इस समय केवल उत्तराखंड में ही यह बिल लागू होगा। वहीं, उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि धामी सरकार को समान नागरिक संहिता बिल को लेकर थोड़ा सब्र करना चाहिए था।
यूसीसी के बिल में क्या-क्या है
उत्तराखंड की धामी सरकार द्वारा पेश किए गए यूसीसी बिल के ड्राफ्ट में विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, न्यायिक प्रक्रिया से तलाक समेत कई मुद्दों को शामिल किया गया है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को अब अधिकार दिए जाएंगे। पति की मौत होने के बाद पत्नी ने दोबारा शादी की, तो मुआवजे में माता-पिता का भी हक होगा। अगर किसी कारणवश पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो उसके मां-बाप की जिम्मेदारी पति पर होगी। इसके अलावा पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ, तो बच्चों की कस्टडी दादा-दादी को दिए जाने का प्रस्ताव भी इस बिल में रखा गया है।
इस बिल में लड़कियों को भी लड़कों के बराबर ही संपत्ति का अधिकार दिया गया है। अभी तक कई धर्मों के पर्सनल लॉ में लड़कों और लड़कियों समान विरासत का अधिकार नहीं है। साथ ही, बहुविवाह और बाल विवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। सभी धर्मों में लड़कियों के लिए एक समान विवाह की उम्र और तलाक के लिए समान आधार और प्रक्रियाएं लागू होगीं। इस कानून में पहाड़ी राज्य के छोटे आदिवासी समुदाय को छूट दी गई है। इसमें बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को भी आसान करने का प्रस्ताव दिया गया है और मुस्लिम समाज की महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार दे दिया जाएगा।
मुस्लिम संगठनों ने जताई नाराजगी
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता बिल के खिलाफ राजनीति भी शुरू हो गई है। वहीं, मुस्लिम संगठनों के द्वारा भी इस बिल को लेकर नाराजगी जताई गई है। देहरादून में इस बिल के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन भी हुआ। जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद की तरफ से कहा गया कि मुस्लिम लोग ऐसे किसी भी कानून को नहीं मानेंगे जो शरियत के खिलाफ जाता हो। यूसीसी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है। अरशद मदनी ने कहा कि यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई पैदा करने के लिए किया जा रहा है। धामी सरकार यह संदेश देना चाहती है कि हम मुसलमानों के लिए वह कार्य करने जा रहे है जो आजादी के बाद से किसी भी सरकार ने नहीं किया है।