इसके जरिए तमाम दल, नेता, उम्मीदार जनता से अपने लिए वोट की अपील करते हैं। लेकिन दिल्ली निगम चुनावों की घोषणा के ठीक अगले दिन दिल्ली की सड़कों पर कुछ अलग ही तरह की पोस्टरबाजी शुरू होती दिखी। बीते दिनों आइटीओ पर लोगों की नजर जैैसे ही कुछ पोस्टरों पर पड़ी, मानो बस में नई बहस छिड़ गई। लोग इसे अपने-अपने शब्दों के तराजू से तौल रहे थे।
दरअसल आइटीओ के मुख्य चौराहे पर दो बड़े पोस्टर लगाए गए थे। इसे लगाने वाले ने अपना नाम मोटे अक्षरों में लिखा था और इसे ‘जनहित’ में जारी बताया था। दोनों ही पोस्टरों में आम आदमी पार्टी के मुखिया पर तीखे कटाक्ष थे। इनमें से एक पर ‘आप’ के मुखिया की तुलना हिटलर से फोटो के साथ की गई थी, तो दूसरे में केजरीवाल को एक लेटे हुए अर्धनग्न व्यक्ति को मसाज करते दर्शाया गया था।
दिल्ली सरकार को ‘आप की सरकार’ की जगह ‘पाप की सरकार’ बताया गया था। बस क्या था, ये पोस्टर लोगों के बीच-बहस का केंद्र बनते दिखे। यहां ‘जनहित’ लिखे पोस्टर को देख सज्जन बोल पड़े यहां ‘स्वहित’ लिख देना चाहिए। इस तरह के पोस्टर की खोज करने वाले एक पार्टी के प्रवक्ता हैं जो आए दिन अपने अलग-अलग कारनामों से चर्चा में बने रहने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
चढ़ावे का रास्ता
जहां चाह वहां राह। वैसे तो यह कहावत किसी सकारात्मक बात के लिए उपयोग होनी चाहिए लेकिन हम यहां गौतमबुद्ध नगर में खाकी विभाग में कार्यरत कर्मचारियों पर इसे उपयोग कर रहे हैं। वह भी चढ़ावे के मामले में। विभाग मामले में बदनाम है और आए दिन इसकी शिकायत ऊपर तक पहुंचती भी रहती है। कई नेता भी मामले पर सार्वजनिक टिप्पणी कर चुके हैं।
ऐसे में संचार क्रांति आने के बाद तो लोगों को डर भी रहता है कि कब कौन वीडियो बना ले या आवाज रिकार्ड कर उसे सार्वजनिक कर दे। इसलिए इसका एक नया तरीका इजाद किया गया है। ऐसे ही एक नए तरीके का शिकार बेदिल को मिल गया। अपनी व्यथा सुनाते हुए बोला, कागजी कार्रवाई के नाम पर कथित आरोपी को घंटों थाने में बैठा लिया और जब कोई मिलने जाए तो उसे थाने के सामने एक व्यक्ति से सलाह लेने के लिए कह दिया जाता।
क्या पता था कि मजबूरी में सलाह देने वाले सौदेबाजी की बात छेड़ देंगे। रास्ता भी बताया गया कि चढ़ावा सीधे किसी को न देकर गुप्त दान की तरह थाने या चौकी के बाहर ही रख देना। मन्नत की तरह काम पूरा हो जाएगा। चढ़ावा चढ़ाने वाले की मन्नत पूरी हुई कि नहीं लेकिन चढ़ावे का इंतजार करने वालों की मौज हो गई।
दांव पर दावेदारी
दिल्ली नगर निगम के चुनावों की घोषणा हो चुकी है। पार्टी कार्यालयों में नेताओं और कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ने लगा है। हर कोई अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों और नेताओं से अपनी सांठगांठ बैठाने की जुगत में है, ताकि इस बारे उसे मौका मिल जाए। ऐसे में उन सक्रिय कार्यकर्ताओं और नेताओं के चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही है, जो पार्टी की हर गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं और उन्हें उम्मीद थी कि मौका आने पर पार्टी उन्हें अवश्य मौका देगी। एक तरह से देखा जाए तो दांव पर उनकी दावेदारी है। हालांकि अगले माह चुनाव है और ऐसे में अपनी कोई नाम किसी पार्टी की ओरÞ से तय नहीं किए गए हैं। लड़ाई टक्कर की है इसलिए कमजोर पर दांव लगाने से सभी बच रहे हैं।
-बेदिल