कथक नृत्यांगना उमा शर्मा का मुख अभिनय और आंगिक अभिनय बेजोड़ है। शास्त्रीय नृत्य के रसिक उनकी कद्र करते हैं। उनके नृत्य को देखने के लिए आज भी लोग देर शाम तक बैठे रहते हैं। वे कहतीं हैं कि कला के पारखी ही कला को समृद्ध करते हैं। स्वामी हरिदास तानसेन संगीत नृत्य महोत्सव के आयोजन के जरिए हम शास्त्रीय संगीत के वरिष्ठ कलाकारों को आमंत्रित करते हैं ताकि कला को संरक्षण मिल सके। युवाओं को प्रेरणा मिले, जिससे वह भी नृत्य और संगीत सीखें। इस तरह के प्रयास से ही कला की परंपरा कायम रह सकेगी।

भारतीय संगीत सदन और श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर से स्वामी हरिदास तानसेन संगीत नृत्य महोत्सव आयोजित था। बारह साल से मॉडर्न स्कूल के शंकर लाल हॉल में यह समारोह आयोजित किया जा रहा है। समारोह की पहली शाम कथक नृत्यांगना उमा शर्मा की शिष्याओं ने कृष्ण-राधा का रास नृत्य पेश किया। उन्होंने रचनाओं- नाचत गावत गोपाल, बाजत सरस सुगंध, जगतगुरु जगदंबे राधा, छबीलो वृंदावन को लाल, होली खेलत नंदलाल बृज में आदि पर आधारित नृत्य पेश किया। नृत्य में रास के साथ कथक नृत्य के टुकड़े, तिहाइयों, चक्करदार तिहाइयों, जुगलबंदी को शामिल किया गया। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं-अंशुप्रिया, सुकृति, अनुराधा, स्मृति, सोहना, सृष्टि व वाणी।

कथक नृत्यांगना उमा शर्मा ने नृत्य करियर का लंबा सफर तय किया है। उन्होंने जयपुर घराने के गुरु हीरालाल, गिरवर लाल और पंडित सुंदर प्रसाद से नृत्य सीखा है। उन्होंने लखनऊ घराने की नजाकत को अभिनय में निखारा है। इसके लिए उन्होंने पंडित शंभू महाराज के सान्निध्य में कथक की बारीकियों को ग्रहण करना बेहतर समझा। दोनों घराने की बारीकियां उनके नृत्य में सहजता से बुनी गई लगती हैं। उनके नृत्य में आंखों, भौहों, हस्तकों और अंगों के संचालन में गजब की नजाकत है। जबकि, सांसों पर अच्छा नियंत्रण भी नजर आता है। उन्होंने कथक की नटवरी नृत्य और वृंदावन के रास को भी बखूबी सीखा है। उन्होंने अपने नृत्य में कृष्ण और स्त्री चरित्र को बेहतरीन ढंग से दर्शाया है।

कथक नृत्यांगना उमा शर्मा ने अपनी प्रस्तुति का आरंभ मीरा के पद से किया। मीरा का पद था-वारी वारी श्याम हूं वारी। नायिका मीरा के ईर्ष्या, शृंगार, विरह और भक्ति के भावों को उमा शर्मा ने दर्शाया। उन्होंने मिर्जा गालिब की गजल- आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक- पर अभिनय पेश किया। उनके अभिनय में सहजता के साथ-साथ सरलता की बानगी थी। उन्होंने नायक और नायिका के भावों को पूरी तन्मयता के साथ चित्रित किया। कथक की इस प्रस्तुति के संगत कलाकारों में शामिल थे-तबले पर मुबारक अली, सितार पर खालिद मुस्तफा, पखावज पर तरुण और पढंत पर योगराज पवार। गीतों, नज्म और भजन को सुरों में पंडित ज्वाला प्रसाद और माधव प्रसाद ने अपने पुरकशिश आवाज में ढाला।