Noida Supertech Twin Towers Demolition News: सुपरटेक ने जीएच-04 सेक्टर-93ए में जिस स्थान पर टावर-16 व 17 का निर्माण कराया वह हरित पट्टी है। प्राधिकरण चाहता तो इस भूमि का भू-प्रयोग बदलकर यहां नियमानुसार इमारत का निर्माण की अनुमति दे सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया। तीन बार मंजिलों की संख्या को बढ़ाने के लिए परियोजना में संशोधन किया गया। दो बार में करीब 23 करोड़ पहली बार में आठ करोड़ व दूसरी बार में 15 करोड़ रुपए (जमा हुई रकम) देकर ‘फ्लोर एरिया रेश्यो’ (एफएआर) खरीदा गया (परचेबल एफएआर)।
जिसके बाद इसकी ऊंचाई 121 मीटर रखी गई। सुपरटेक एमराल्ड को 23 नवंबर 2004 को सेक्टर-93ए में 48263 वर्ग मीटर जमीन का आबंटन किया गया। 21 जून 2006 को प्राधिकरण ने 6556.51 वर्ग मीटर जमीन का आबंटन किया। इस दौरान सुपरटेक कंपनी को 1.5 एफएआर दिया गया।
19 नवंबर 2009 को सुपरटेक के कहने पर दूसरी बार परियोजना को संशोधित करते हुए उसने 1.5 एफएआर का 33 फीसद खरीदा, जिसके बाद एफएआर 1.995 हो गया। यह एफएआर उसने आठ करोड़ रुपए में खरीदा। 26 नवंबर 2009 को प्राधिकरण ने एमराल्ड कोर्ट का दूसरा संशोधन स्वीकृत कर दिया। जिसमें बिल्डर ने घर खरीददारों के समक्ष टी-16 टावर में भूतल और 11 मंजिल और भूतल व शापिंग कांप्लेक्स के स्थान पर दोनों टावरों में भूतल के साथ 24 मंजिलों का 73 मीटर ऊंचाई की नई योजना प्रस्तुत की।
बिल्डर ने तीसरी बार एफएआर खरीद के लिए प्राधिकरण में आवेदन किया। प्राधिकरण ने तीसरा संशोधित प्लान भी मंजूर कर दिया। इसके तहत दोनों टावरों को 24 से बढ़ाकर 40 मंजिल का कर दिया गया। साथ की इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। 25 अक्तूबर 2011 को सुपरटेक ने 15 करोड़ में यह एफएआर खरीदा।
‘दूसरी तकनीक से गिराने में दो साल लगते’
नोएडा में सुपरटेक के अवैध जुड़वां टावर को सुरक्षित तरीके से गिराने के लिए दो ही विकल्प थे, पहला विस्फोटक से कुछ सेकेंड में गिरा दिया जाए या फिर तोड़ा जाए जिसमें डेढ़ से दो साल का समय लगता। यह बात विशेषज्ञों ने कही। एडफिस के साझेदार उत्कर्ष मेहता ने बताया कि वे ‘150 फीसद’ आश्वस्त हैं कि जुड़वां टावर सुरक्षित और उनके द्वारा परिकल्पित दिशा में गिरा दिए जाएंगे। मेहता ने कहा कि उनके पास किसी भी ढांचे को गिराने के लिए तीन विकल्प – डायमंड कटर, रोबोट का इस्तेमाल और ‘इम्प्लोजन’ (ध्वस्त करना) है।
उन्होंने कहा, ‘इमारत को गिराने का तरीका तीन आधार- लागत, समय और सुरक्षा- पर चुना गया। मेहता ने बताया कि ‘डायमंड कटर’ तकनीक से इमारत को पूरी तरह से गिराने में करीब दो साल का समय लगता और इसपर ‘इम्प्लोजन’ तकनीक के मुकाबले पांच गुना लागत आती। उन्होंने कहा, ‘‘इस तकनीक के तहत ऊपर से नीचे की ओर क्रेन की मदद से प्रत्येक खंभों, दीवारों और बीम को काट-काट कर अलग करना होता।’’ मेहता ने कहा कि रोबोटिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने पर करीब डेढ़ से दो साल का समय लगता और इस दौरान भारी शोर होता जिसकी वजह से एमराल्ड कोर्ट और एटीएस विलेज में रहने वालों को पेरशानी होती।
उन्होंने कहा कि इस तरीके से इमारत गिराने पर डायमंड कटर के मुकाबले कम लेकिन ‘इम्प्लोजन’ के मुकाबले अधिक लागत आती। एडफिस के प्रमुख ने कहा कि चूंकि उच्चतम न्यायालय ने जुड़वां टावर को वहां के निवासियों को बिना परेशान किए गिराने का आदेश दिया था, इसलिए ‘इम्प्लोजन’ तकनीक को इसके लिए चुना गया।
