दिल्ली पुलिस विभाग में कुछ ऐसे कर्मचारी भी हैं जिनके ऊपर ‘काम के न काज के दुश्मन अनाज के’ मुहावरा सटीक बैठता है। विभाग में ऐसे ही कुछ अधिकारी हैं जो महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे जरूर हैं लेकिन काम के नाम पर वे ऐसे गायब हैं कि पूछिए मत। अधिकारियों के हिस्से का काम इतना लंबित है कि अब तो कर्मचारी भी इस आलस से ऊब चुके हैं। बेदिल का पिछले दिनों विभाग के ऐसे ही एक अधिकारी के कर्मचारी से वास्ता हुआ। वह बता रहे थे कि जिस तरह से अधिकारी सुबह से शाम तक सिर्फ विभाग में आराम फरमाते हैं उसे देखकर लगता है कि उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की इच्छा है। यह अधिकारी बड़े पद हैं और उनके रहते अभी किसी तरह की फाइल निपटती नहीं दिख रही है। जब लोग उनसे अपने फाइल के संबंध में बात करने आते हैं तो वह कहते हैं कि ‘अभी कोरोना गया नहीं।’ अब आप ही देखिए इतना आराम कौन करता है?
बुरे फंसे साहब
राजधानी की सुरक्षा करने वाले विभाग के मुखिया ने आते ही तबादलों की एक लंबी फेहरिस्त जारी कर दी है। नए लोगों में कुछ घोड़े के जैसे दौड़-दौड़ के काम कर रहे हैं। अधिकारियों के बीच चर्चा का यह मुख्य विषय बन चुका है कि इस तरह कब तक अधिकारी सक्रिय रहेंगे। वो क्या है न कि जिले की कमान संभाल रहे अधिकारी जितनी अधिक सक्रियता दिखाएंगे, उससे कहीं अधिक सक्रिय उनके मातहतों को भी रहना पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर जिला पुलिस के आला अधिकारियों के सक्रिय होने के बाद उन अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है, जो लंबे वक्त से जिले में कुंडली मार कर बैठे थे। ऐसे अधिकारियों को भी अब अंदरखाने तबादले का डर सता रहा है। इसी कारण से वे सब असमंजस की स्थिति में पहुंच गए हैं। उनका मानना है कि यदि सक्रियता बढ़ाते हैं तो दूसरों को लगेगा कि मुखिया बदलने के बाद उन्होंने व्यवहार बदल लिया। यदि सक्रियता नहीं बढ़ाएंगे तो सिर पर तबादले की तलवार लटकती दिखाई दे रही है।
दलाल का मलाल
कुछ सरकारी विभागों में दलालों की भूमिका इतनी सशक्त हो गई है कि लगता है कि कर्मचारियों से ज्यादा काम तो ये दलाल जानते हैं। दिल्ली से लगे नोएडा के प्राधिकरण दफ्तर में दलालों के प्रवेश पर कड़ाई से रोक लगाने वाले नए अधिकारियों के निर्णय का सकारात्मक के बजाए नकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहा है। हालांकि इसके पीछे कुछ यहां के कर्मचारी व अधिकारी बताए जा रहे हैं ताकि दलालों से उनका भी ‘जुगाड़’ चलता रहे। इस व्यवस्था के लागू होने से प्राधिकरण के लोगों से सीधे सरोकार रखने वाले विभाग जैसे आवासीय भूखंड, नियोजन, रिहायशी फ्लैट, औद्योगिक भूखंड आदि में काम एक तरह से ठप पड़ गए है। अधिकारी फाइलों को आगे तो बढ़ा रहे हैं, मगर कोई न कोई कमी बताकर वापस भेज दे रहे हैं। यहीं नहीं, अधिकारी के पास कमी का निदान भी नहीं है। बेदिल ने देखा कि पिछले एक सप्ताह से रोजाना बड़ी संख्या में आबंटी खुद अपना काम कराने के लिए कार्यालयों के बाहर तक पहुंचते हैं। वहां पर तैनात पुलिसकर्मियों से मान मुनव्वल करने के बाद यदि संबंधित अधिकारी से बात करने का मौका मिल भी जाता है, तब भी केवल दस्तावेजों में कमी होने की बात सुनकर लौट रहे हैं। दरअसल प्राधिकरण में अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी अन्य विभागों से आए हैं ऐसे में दलाल ही जरूरी दस्तावेज और प्रपत्रों को उपलब्ध कराकर फाइलें आगे बढ़ा रहे थे। यह व्यवस्था बंद होने से दस्तावेजी कार्य थम सा गया है। ऐसे अब लोग दलालों को याद करते दिख रहे हैं।
-बेदिल
आलस की हद
दिल्ली पुलिस विभाग में कुछ ऐसे कर्मचारी भी हैं जिनके ऊपर ‘काम के न काज के दुश्मन अनाज के’ मुहावरा सटीक बैठता है।
Written by जनसत्ता
नई दिल्ली

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First published on: 11-10-2021 at 06:33 IST