बिहार में बिना राशन कार्ड वालों को राशन कब मिलेगा? इस पर अभी कोई पुख्ता फैसला भी नहीं हुआ है। और बैठकें ही हो रही है। जबकि लाकडाउन का चौथा दौर दो दिन बाद 31 मई को खत्म हो जाएगा। गरीबों की सरकार कब सुनेगी। हां जिनके पास राशन कार्ड है उन्हें कमोवेश राशन मिल रहा है। सरकार फरमान जरूर जारी कर रही है कि बिना राशन कार्ड वालों को भी राशन दिया जाएगा। मगर कब?

भुखमरी का दौर तो अब शुरू होने वाला है। लाखों मजदूर दूसरे प्रदेशों से अपना काम धंधा बंद कर अपनी जान लेकर किसी तरह अपने घर पहुंच रहे है। मनरेगा और दूसरे छोटे काम के भरोसे सरकार इन्हें कितना काम मुहैया करा पाएगी? जहां की सरकार कहती हो कि बिहार उपभोक्ता प्रदेश है न कि उत्पादक प्रदेश। वाकई यह सच भी है कि यहां न कल-कारखाने है और न कोई बड़ा उद्योग। कृषि और बालू के भरोसे हम कहां तक कमाई कर सकते है। सारा बोझ मध्यमवर्ग पर है। टैक्स से सरकार का काम चल रहा है। वहां बगैर रोजगार के क्या होना है? राशन अभी ही लोगों को नहीं मिल रहा है। तो करीबन 25 लाख वापस अपने राज्य लौट रहे लोगों का भोजन कहां से जुटेगा?यह अहम सवाल खड़ा है।

कदवा ग़ांव की फूल कुमारी हो या खैरपुर पंचायत के लक्ष्मनियाँ ग़ांव की मंचन देवी या पीरपैंती के धुनियांचक के प्रवीण पासवान। ये सभी कहते है कि न तो इनका राशन कार्ड बना और न ही अनाज मिला। इनके परिवार के सामने भूख मरने की नौबत है। इनकी बातों से लगता है कि सरकारी दावे खोखले है। इनके जैसे हजारों परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है। राज्य सरकार इन्हें राशन देने के वास्ते लाकडाउन के साठ दिनों से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी बैठकें ही कर रही है। वहीं केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान गरीबों को बगैर राशन कार्ड अनाज मुहैया कराने की मांग को वाजिब ठहरा रहे है।

मगर इन्हें नया राशन कार्ड और अनाज मुहैया कराने में बहुत सारी पेचीदगियां है। गरीबों का कहना है कि गांवों में दलाल हावी है। तो ज़िलों में बैठे आलाधिकारी। अव्वल तो इनके आवेदन क्यों और कैसे खारिज हुए? बाद में अस्वीकृत राशन कार्ड के आवेदनों में से हजारों कैसे स्वीकृत हुए? जीविका दीदियों के जरिए नए राशन कार्ड आवेदन किस हाल में है? इन सब सवालों के साथ सबसे बड़ा सवाल है कि इन्हें सरकारी योजना का मुफ्त अनाज कब मिलेगा? जबकि कोरोना की वजह से इनके सामने फाकाकशी छाई है। काम धंधा , दिहाड़ी मजदूरी, ऑटो-ई-रिक्शा, साइकिल रिक्शा , दर्जी की दुकानें सब बंद है।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का बयान आया कि अनाज के साथ एक किलो दाल और दो किलो चना हरेक परिवार को मिलेगा। मगर गांवों तक न चना आया न दाल। दूसरी तरफ केंद्र सरकार बिहार को 2011 की जनगणना के हिसाब से अनाज दे रहा है। उसके हिसाब से 8.71 करोड़ लाभुकों को अनाज देने का इंतजाम करना है। जबकि नौ साल में जनसंख्या में इजाफा हुआ है। मसलन डेढ़ करोड़ लाभुक आज भी बंचित है। कोरोना संकट ने इन सबकी पोल खोल कर रख दी है।बिहार के मंत्री मदन साहनी ने कई दफा केंद्र के सामने यह मुद्दा उठाया है।

बीते शुक्रवार को महागठबंधन के नेताओं से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बातचीत की है। जिसमें बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि आयकर नहीं देने वाले देश के सभी लोगों के खाते में आठ हजार रुपए सरकार को देने का सुझाव देना चाहिए। साथ ही राशन कार्ड हो या नहीं हो हरेक गरीब परिवार को छह महीने तक 25 किलो अनाज देने की व्यवस्था होनी चाहिए।

मगर सरकार और विपक्ष कोरोना काल की संकट की घड़ी में भी बैठकें ही कर रहे है। इधर गरीब बीमारी से जंग के साथ भूख से भी लड़ रहे है। बीमारी जब कभी चपेट में लेगी या नहीं , यह निश्चय की बात है। पर यह तय है कि भूख जरूर जान ले लेगी। पेट को रोजाना अपनी खुराक चाहिए। वरना बड़े से बड़े सुरमा को पछाड़ देती है। कदवा की फूल कुमारी का कहना है कि राशन कार्ड है नहीं। नतीजतन सरकार की किसी योजना का फायदा हमें नहीं मिलता है। यह हालत बिहार के ज्यादातर गांवों के बहुत सारे लोगों की है। यदि इनके नाम पर अनाज आ भी रहा है तो अधिकारी-डीलर-दलाल का गठजोड़ इस कदर मजबूत है कि इन्हें जानकारी तक नहीं मिलती। अनाज देना तो दूर की बात है।

अलबत्ता जनवितरण प्रणाली की दुकानों से मिलने वाला सस्ता अनाज और मुफ्त अनाज का लाभ इन्हें नहीं मिल पाता है। डीलर बोगस राशन कार्ड के नाम पर अनाज कालाबाजारी में बेच देते है। यह धंधा आज नया नहीं है। और ऐसा भी नहीं कि इस गोरखधंधे से मंत्री-अधिकारी सब वाकिफ नहीं है। मिसाल के तौर पर हम एक ज़िले को ही ले। भागलपुर ज़िले के ही सोलह प्रखंडों में यह खेल खुले आम है। ऐसा जानकर बताते है।

कोरोना माहमारी ने हकीकत को सामने ला दिया है। डीलर से रोजाना कहीं न कहीं से झंझट होने की खबरें मिलती है। ये खबरें तय मात्रा से कम अनाज देने, अधिक कीमत वसूलने और मुफ्त अनाज न देने से जुड़ी होती है। जनप्रतिनिधियों में विरोधी पक्ष के लोगों ने तो बगैर कार्ड के राशन मुहैया कराने की मांग जोरदार तरीके से उठाई है। मगर सत्ता पक्ष चुप्पी साधे है। यह तो गनीमत है कि ग़ांव-देहात और शहरों में स्वयंसेवी संस्थाएं सूखा और तैयार भोजन रोजाना हजारों जरूरतमंदों के बीच वितरित किया जा रहा है। अन्यथा चारो तरफ हाहाकार मच जाता।

फोटो1-पीरपैंती धुनियांचक के प्रवीण पासवान अपनी पत्नी काजल कुमारी और बच्चों के साथ। फोटो2- नवगछिया के खैरपुर पंचायत के लखमनियाँ ग़ांव की मंचन देवी। इनके पास राशन कार्ड नहीं है। इन्हें न राशन मिला न पैसा।