प्रचंड बहुमत से फरवरी, 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी (आप) के लिए लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद चुनौती खड़ी है। ‘आप’ को बिखरने से रोकना होगा और कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को जीतने लायक बनाने के लिए पार्टी को बड़ी परीक्षा पास करनी होगी। 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद ‘आप’ का राजनीतिक ग्राफ लगातार गिर रहा है। हर बार बिजली हाफ और पानी माफ जैसे मुद्दे खोजना आसान नहीं होंगे।

लोकसभा चुनाव से पहले हवा का रुख भांप कर पार्टी के दो विधायक ( देवेंद्र सहरावत और अनिल वाजपेई) भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा के एक नेता ने दावा किया था कि कई और विधायक उनके संपर्क में हैं। वैसे यह लगता नहीं है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा दिल्ली सरकार गिराने का कोई प्रयास करेगी। पिछली लोकसभा चुनाव में भी ‘आप’ को कोई सीट नहीं मिली थी लेकिन तब ‘आप’ दूसरे नंबर पर रही और आप-भाजपा के वोटों का अंतर 13 फीसद था, इस बार अंतर करीब 39 फीसद है। योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, शांतिभूषण, प्रो आनंद कुमार आदि नेता ‘आप’ से विदा हो चुके हैं और राजमोहन गांधी, एडमिरल रामदास, आशुतोष, आशीष खेतान सरीखे अनेक ख्याति प्राप्त व्यक्ति भी ‘आप’ से दूर हैं।

भाजपा में स्थानीय नेतृत्व कमजोर है और जो है उसके खिलाफ पार्टी के ही नेता सक्रिय हैं। 2015 में ‘आप’ को जिन बिरादरी ने सबसे ज्यादा साथ दिया था उनमें पूर्वांचल के प्रवासी, दलित (गरीब बस्तियों के लोग) और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग शामिल थे। लोकसभा नतीजों से साफ हो रहा है कि अल्पसंख्यक छोड़कर हर इलाके में भाजपा को भारी बहुमत मिला है। दूसरी बार बिजली पानी सस्ता करने के नाम पर फरवरी, 2015 में प्रचंड बहुमत से सरकार बनी तो ‘आप’ ने अपने 70 सूत्री एजंडे को लागू करने की बात कही। इस बार तो लोगों को कामों का हिसाब भी देना होगा। इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को पंजाब में को केवल एक सीट मिल पाई। पिछली बार उसने चार सीटें जीती थी। इतना ही नहीं ‘आप’ ने चुनाव प्रचार के बीच में दिल्ली को पूर्ण राज्य दिलाने का अपना मुख्य एजंडा बदल दिया। लोकसभा चुनाव नतीजों ने ‘आप’ को परेशान कर दिया है, अब तो उसके लिए दिल्ली बचाना भी बड़ी चुनौती बन गया है।

बदल गई केजरीवाल की छवि 
‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल की छवि बदल गई है। राजनीतिक पार्टी बनने से पहले उन्होंने जुलाई, 2012 में जंतर मंतर पर 12 दिन का धरना दिया। पहला बेमियादी अनशन बिजली के मुद्दे पर मार्च, 2013 में सुंदर नगरी में 15 दिनों तक किया गया था। यही अनशन उनकी राजनीतिक सफलता का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। दोबारा सत्ता में आने पर उनके काम का तरीका बदल गया। इस बार वे लोगों से संवाद करने और उनके बीच जाने से बचने लगे और हर बात पर केंद्र सरकार, उप राज्यपाल से लड़ने लगे।

मंत्री भी हुए बदनाम
जाली प्रमाण पत्र बनाने, रिश्वत लेने और सेक्स कांड के आरोप में तीन मंत्री फंस चुके हैं। इसके अलावा भी कई नेताओं के मामले सामने आते रहे। अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बोलने पर बड़े नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया जिससे छोटे नेताओं की कोई हैसियत न रही। इसी से परेशान सुल्तानपुरी के विधायक और मंत्री रहे संदीप कुमार बसपा में शामिल हो गए। मटिया महल के विधायक और मंत्री रहे असीम अहमद खान और चांदनी चौक की विधायक अलका लांबा के किसी भी दिन कांग्रेस में जाने की खबर आ सकती है।