बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट) का नेतृत्व करने वाली तेजस्वी यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल एक ओर विपक्षी पार्टियों को कड़ी टक्कर दे रही है। हालांकि गठबंधन में ही शामिल कांग्रेस का कद बीते चुनाव से भी छोटा होता दिख रहा है। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो विधानसभा की 70 सीटें कांग्रेस को देना तेजस्वी यादव की एक गलती थी, जो पार्टी को भारी पड़ रही है। महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को देखें तो आरजेडी 144 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा। लेफ्ट दलों की बात करें तो सीपीएम को 4 सीटें मिली, सीपीआई को 6 और बची 19 सीट सीपीआई (एमएल) को दी गई।

कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस 20 पर ही सिमटती नजर आ रही है। हालांकि कांग्रेस का यह खराब प्रदर्शन पहली बार नहीं है, जिससे तेजस्वी यादव का खेल बिगड़ रहा हो। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव यह खामियाजा भुगत चुके हैं। साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। जिसमें कुल 403 सीटों में से कांग्रेस ने 105 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि समाजवादी पार्टी ने 298 सीटों पर चुनाव लड़ा। तब भी चुनाव का परिणाम कुछ इस तरह आया कि कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी की भी नैया डुब्बो दी। कांग्रेस 105 सीटों में से मात्र 7 सीट पर सिमट कर रह गई थी।

इससे ज्यादा तो अपना दल ने 9 सीटें जीतकर प्रदेश में चौथी सबसे बड़ी पार्टी होने का तमगा हासिल किया था। भले ही राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ को महागठबंधन के लिए जनमत बताया जाता रहा हो। लेकिन अखिलेश यादव की ही तरह आज बिहार में तेजस्वी यादव के लिए कांग्रेस रास्ते का रोड़ा बनती नजर आ रही है। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि अगर महागठबंधन में कांग्रेस को कम सीटें दी जाती तो आरजेडी और बेहतर प्रदर्शन कर सकती थी।

कांग्रेस पार्टी के नेता और राज्य सभा सदस्य नासिर हुसैन ने पार्टी के खराब प्रदर्शन को स्वीकारते हुए कहा है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस राज्य में सबसे छोटी पार्टी है। राहुल गांधी ने प्रदेश भर में चुनाव प्रचार किया, लेकिन संगठन में कुछ कमजोरियां हैं, जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। यह दिलचस्प बात है कि एक तरफ आरजेडी को अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस के चलते सत्ता से दूर रहना पड़ रहा है तो वहीं साथी बीजेपी के चलते जेडीयू एक बार फिर से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने के करीब है।