मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि जन वितरण सेवाओं के जरिए राशन कार्ड धारकों को मुफ्त में चावल देने की सुविधा को सिर्फ बीपीएल परिवारों तक सीमित रखा जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि सभी तबके के लोगों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटे जाने से लोग ‘आलसी’ हो गए हैं।
अदालत ने कहा कि सरकार के लिए जरूरतमंदों और गरीबों को चावल और अन्य किराने का सामना देना जरूरी है, लेकिन पहले की सरकारों ने राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह का लाभ सभी तबकों को दिया। न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दूस की पीठ ने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, लोगों ने सरकार से सबकुछ मुफ्त में पाने की उम्मीद करनी शुरू कर दी। नतीजतन वे आलसी हो गए हैं और छोटे-छोटे काम के लिए भी प्रवासी मजदूरों की मदद ली जाने लगी है।’’

बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ गुरुवार को पीडीएस के चावल की तस्करी कर उसे बेचने के आरोप में गुंडा कानून के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति द्वारा इसे चुनौती दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान सरकार ने पीठ को बताया गया था कि आर्थिक हैसियत का खयाल किए बगैर सभी राशनकार्ड धारकों को मुफ्त में चावल दिया जाता है। मामले की सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार ने कहा कि उन्होंने साल 2017-18 के दौरान मुफ्त चावल बांटने के लिए 2110 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। एक अंतरिम आदेश के दौरान हाईकोर्ट बेंच ने पूछा कि क्या राज्य में ऐसा कोई सर्वे किया गया है, जिसमें बीपीएल परिवारों की संख्या, कितना चावल इन परिवारों को चाहिए आदि की जानकारी हो सके?

अदालत ने कहा कि वह जरुरतमंद और गरीब पिछड़े तबके के लोगों को चावल डिस्ट्रीब्यूशन के खिलाफ नहीं है लेकिन यह लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति जाने बिना नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि स्कीम से गरीब और पिछड़ों से अन्य लोगों को फायदा मिल रहा है तो यह गलत है और जनता के पैसे का दुरुपयोग है। कोर्ट ने तमिलनाडु सिविल सप्लाई कॉरपोरेशन को पिछले 10 साल का रिकॉर्ड कोर्ट में जमा करने के निर्देश दिए हैं। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 30 नवंबर को होगी।