तमिलनाडु में जल्लीकट्टू एक पारंपरिक बैलों को काबू में करने की खेल प्रतियोगिता है। हर साल जनवरी के महीने में मकर संक्रांति के बाद पोंगल के समय ये प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। जल्लीकट्टू के दौरान अब तक अवनीपुरम और पलामेडु में आयोजित कार्यक्रमों में 100 से अधिक लोग घायल हो गए। पुलिस के मुताबिक इनमें से कम से कम 20 लोग गंभीर रूप से घायल हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू पर कानूनी रुप से प्रतिबंध लगा चुका है। बता दें कि 500 सांडों को वश में करने के लिए करीब 735 पुरुषों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा में लिया था। इस बार जल्लीकट्टू का आयोजन करने के लिए प्रदेश सरकार ने कुछ निर्देश जारी किए हैं साथ ही जल्लीकट्टू में हिस्सा ले रहे सभी सांडों के नाम पर टोकन जारी किए जा रहे हैं।

आज जल्लीकट्टू के आखिरी दिन मदुरै के अलंगानल्लूर में बैलों की लड़ाई की खेल प्रतियोगिता की काफी जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। इसके लिए यहां के एक मंदिर में बड़ी संख्या में बैलों को उनकी पूजा के लिए लाया गया है। बीते दिन प्रतियोगिता में शामिल बुल टैमर्स और बैल मालिकों को पुरस्कार भी दिए गए। प्रथम पुरस्कार के रूप में बैल मालिक को एक कार प्रदान की गई लेकिन वो प्रतियोगिता में शामिल नहीं था। ओथवेदु गांव के प्रभाकरन को 10 बैलों को बांधने के लिए विशेष पुरस्कार मिला, जबकि अजय ने नौ बैलों को बांधने के लिए दूसरा पुरस्कार जीता और मेट्टूपट्टी कार्तिक सरवनन ने सात बैलों को बांधकर तीसरा स्थान हासिल किया।

इस दौरान मदुरै में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्रतियोगिता में शामिल करीब 20 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और जिन्हे बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 535 सांडों को वश में करने के लिए बुधवार को 735 पुरुषों ने प्रतिस्पर्धा की थी।

मदुरै के जिला कलेक्टर नटराजन और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डेविडसन ने मीडिया को बताया कि पिछले दो दिनों से जारी यह प्रतियोगिता शांति पूर्ण हो रही है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को मदुरै के अलंगनल्लूर में जल्लीकट्टू के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था की गई है। बता दें कि अलंगानल्लूर जल्लीकट्टू के लिए लंबे समय से प्रसिद्ध है और राज्य सरकार इसे यूरोप और अमेरिका से आये पर्यटकों को भी दिखाती है। बताया जाता है कि जलीकट्टू की शुरुआत 2000 साल से भी पहले हुई थी।

बता दें कि इस प्रतियोगिता से पहले बैलों को गुस्सा दिलाया जाता है इसके बाद उनको काबू में करने का प्रयास किया जाता है और इसी खेल को जल्लीकट्टू कहते है। इस खेल में बड़ी संख्या युवक एक-एक कर बैल के साथ मैदान में उतरते हैं और बैलों के साथ लड़ाई करते हैं। बैलों के हमले में युवक गंभीर रुप से घायल भी हो जाते हैं और कई बार तो उनकी जान भी चली जाती है। गौरतलब है कि पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने शुरू से इसका विरोध किया है लेकिन परंपरा के नाम पर ये अब तक जारी है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर कानूनी रुप से प्रतिबंध लगा चुका है।