कहते है संघर्ष और मेहनत से इंसान हर वो मुकाम पा सकता है, जिसका वो सपना देखता हो। ऐसी ही संघर्षों से भरी कहानी है तमिलनाडु के डी रंजीत की। बोलने-सुनने में असमर्थ रंजीत ने कभी भी अपनी दिव्यांगता को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। यही कारण है कि आज वो बड़े अफसर बन चुके हैं।
दिव्यांगता अभिशाप नहीं, इस कथन को सिद्ध करने वाले रंजीत ने जब यूपीएससी में बाजी मारी और स्पेशल कैटोगरी में तमिलनाडु से टॉपर हुए तो उनेक घर वालों को भी विश्वास नहीं हुआ कि उनका बेटा अब अफसर बन गया है। यूपीएससी एग्जाम 2020 में रंजीत ने 750वीं रैंक लाई है। यह सफलता उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में हासिल कर ली थी।
रंजीत की मां अमृतवल्ली ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वह अपने बेटे की उपलब्धि पर बहुत खुश और हैरान हैं। परिवार इस बात से अनजान था कि दिव्यांग व्यक्ति भी यूपीएससी परीक्षा में शामिल हो सकता है। रंजीत ने अपनी 12वीं की परीक्षा में भी दिव्यांग वर्ग में टॉप किया था और राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें 50 हजार रुपये का नकद इनाम भी दिया था। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
रंजीत की कहानी इतनी आसान भी नहीं रही। बोलने में असमर्थ रंजीत को मां ने ही उन्हें लिप रीडिंग सिखाई थी। उनकी मां से ही, शुरूआती शिक्षा मिली और यहीं से उनके साथ सफलता जुड़ती चली गई। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ता है, जिसने उन्हें तब भी आगे बढ़ाया जब कंपनियों ने उन्हें प्लेसमेंट के दौरान ठुकरा दिया था। हार मानने के बजाय, उन्होंने और बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया और सिविल परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए।
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार यूपीएससी क्लियर करने के बाद रंजीत ने कहा कि मेरे पास एक कंपनी में काम करने के सभी गुण थे, फिर भी मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। तभी मैंने यूपीएससी की पढ़ाई शुरू की।
यूपीएससी की तैयारी के लिए उन्हें घर से दूर चेन्नई में कोचिंग के लिए जाना पड़ा। उन्होंने पढ़ाई भी तमिल भाषा में की थी और सिविल सेवा की परीक्षा भी उन्होंने तमिल भाषा में ही दी। जिसके बाद पहली प्रयास में उन्होंने सफलता हासिल कर ली।