तमिलनाडु के कांचीपुरम में सालों बाद बंधुआ मजदूरी की कैद से आजाद कराए गए काशी अभी भी डर के साए में हैं। काशी को जिन लोगों ने बीस हजार रुपए के कर्ज के बदले सालों तक कैद में रखा उन्होंने मारने की धमकी दी थी। कांचीपुरम के पास पेरियारकुम्बुर गांव के निवासी काशी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया, ‘राजस्व अधिकारियों ने हमें आजाद कराने के बाद देर रात घर पर छोड़ दिया। उन्होंने हमें दस किलो चावल, एक धोती और एक साड़ी भी दी। मगर कल रात ही मालिक के करीबी हमारे घर आए और धमकी दी। हमें डरे हुए हैं कि वो हमें बाद में नुकसान पहुंचाएंगे।’
70 वर्षीय काशी उस वक्त मीडिया की सुर्खियों में आए जब एक अंग्रेजी अखबार ने उनकी तस्वीर छापी, जिसमें वह राजस्व अधिकारियों के पैरों पर गिरे हुए हैं। राजस्व अधिकारी एक खुफिया सूचना के आधार पर लकड़ी की कारखाने में पहुंचे और दर्जनों बंधुआ मजदूरों को आजाद कराया। हालांकि एसटी इरुला समुदाय के काशी और अन्य मजदूरों को अभी तक रिलीज सर्टिफिकेट नहीं दिया गया है। यह सर्टिफिकेट मालिक के कर्ज को रद्द करते हैं और बचाए गए लोगों को केंद्रीय और राज्य सरकारों की योजनाओं का लाभार्थी बनाते हैं। इसके अलावा इन लोगों को बीस हजार रुपए की सहायता भी दी जाती है। काशी ने बताया, ‘बीस हजार के कर्ज के बदले मैं नटराजन के यहां पांच साल से भी ज्यादा वक्त से काम कर रहा हूं। मैंने उससे यह रकम उधार ली थी।’
मामले में काशी के एक पड़ोसी ने बताया, ‘मालिक अभी फरार नहीं है। वह खुद आया था और बीती रात हमें धमकी दी।’ बता दें कि बुधवार को राजस्व अधिकारियों ने कांचीपुरम और वेल्लूर जिलों में लकड़ी के कारखाने की अलग-अलग यूनिट से 42 लोगों को बंधुआ मजदूरी की गुलामी से आजाद कराया था। इनमें से अधिकतर लोग पेरियाकरुम्बुर गांव के निवासी है। एक गुप्त सूचना के बाद कांचीपुरम के सब कलेक्टर ए सर्वनन और रानीपेट के सब कलेक्टर इलमभवथ ने एक ही समय पर दोनों ठिकानों पर छापेमारी कर इन लोगों को बंधुरा मजदूरी के जुल्म से आजाद कराया। आजाद के कराए 14 लोगों को रिलीज सर्टिफिकेट बुधवार को दे दिया गया।