दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को जानकारी दी कि ई-सिगरेट के उत्पादन, बिक्री और आपूर्ति पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाये गये हैं और इसे लेकर जागरुकता फैलाने के प्रयास किये जा रहे हैं। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने एक हलफनामे में कहा कि ई-सिगरेट और ई-लिक्विड के रूप में निकोटीन का उत्पादन ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट (डीसीए) के खिलाफ है। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत आने वाले डीजीएचएस ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष एक हलफनामा प्रस्तुत कर अपना रुख व्यक्त किया। यह पीठ ई-सिगरेटों की बिक्री और खपत के नियमन करने की मांग वाली याचिका की सुनवायी कर रही है। अदालत अब इस मामले की अगली सुनवायी 21 अगस्त को करेगी। आपको बता दें कि ई-सिगरेट मोबाइल की तरह चार्जेबिल होती है, जिसे बिजली के द्वारा चार्ज की किया जा सकता है।
डीजीएचएस ने हलफनामे में कहा कि केवल एक निश्चित प्रकार की निकोटीन के उत्पादन को ही डीसीए के तहत अनुमति दी गई है। इलेक्ट्रॉनिक व वाष्पीकृत सिगरेट, इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलिवरी सिस्टम (एंड्स), ई-सिगरेट और ई-लिक्विड्स इस एक्ट के तहत उत्पादन की श्रेणी में नहीं आते हैं। ई-सिगरेट हाथ से संचालित होने वाला एक यंत्र है, जिसे पीते हुये तंबाकू के धूम्रपान जैसा एहसास होता है। यह सिगरेट के जैसा ही लगभग दिखता है और आजकल सिगरेट के विकल्प के तौर पर इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है। इस यंत्र को बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि इस यंत्र को जब चालू किया जाता है तब इसके अंदर मौजूद ई-लिक्विड जलने लगता है और तंबाकू जैसी गंध वाला वाष्प निकलने लगता है।
हलफनामे में कहा गया कि हरेक स्तरों पर जन जागरुकता फैलाई जा रही है, जिनमें शैक्षणिक संस्थान, इसके विभिन्न हितधारक शामिल हैं। इसके दुष्प्रभावों को बताने के लिए कई गतिविधियां आयोजित करने की भी योजना बनाई जा रही है। इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी अदालत को बताया था कि ई-सिगरेट के जरिये निकोटीन की लत युवाओं को पारंपरिक तंबाकू उत्पादों के सेवन की तरफ धकेल सकता है और इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाये जाने पर विचार किया जाना चाहिए।