ED Case on Anil Deshmukh: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को दी गई जमानत को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी, इस प्रकार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को राहत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से NCP नेता और महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को बड़ी राहत मिली है। पिछले हफ्ते ही बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें 1 लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी थी।
हालांकि कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि चूंकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में जो टिप्पणियां की थीं, वो यह तय करने के लिए थीं कि क्या देशमुख जमानत के हकदार हैं? उनकी जमानत से इस मुकदमे या किसी अन्य कार्यवाही पर कोई असर तो नहीं पड़ेगा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, “चूंकि बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश में टिप्पणियां केवल तभी तक सीमित हैं जब वह जमानत के हकदार थे, हम स्पष्ट करते हैं कि वे मुकदमे या किसी अन्य कार्यवाही को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करेंगे। यह कहते हुए हम हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।”
आपको बता दें कि इसके पहले अनिल देशमुख पर ईडी द्वारा मनी लांड्रिंग केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 अक्टूबर को पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को जमानत दे दी थी। जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था। जहां मंगलवार (11 अक्टूबर) को उसे निराशा हाथ लगी।
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में कही ये बात
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में ईडी की ओर से कहा कि सिर्फ इसलिए कि देशमुख का एक ही बैंक से बैंक लेनदेन है, इसका मतलब यह नहीं है कि कोई मनी लॉन्ड्रिंग नहीं है। तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उच्च न्यायालय ने बर्खास्त सिपाही सचिन वाजे के बारे में गलत निष्कर्ष निकाला, जो एक सरकारी गवाह बनने से पहले मामले में सह-आरोपी थे। बॉम्बे हाई कोर्ट ने ये माना था कि वाजे के बयान की फरवरी और मार्च 2021 के महीनों के दौरान बार मालिकों से जबरन वसूली की गई थी और 1.71 करोड़ की धनराशि देशमुख के निजी सहायक को सौंपी गई थी। इस बात में निश्चितता का अभाव था।
सालीसिटर जनरल के तर्कों पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिया ये जवाब
सॉलीसिटर जनरल ने कहा, यदि उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं तो उनका तबादला (अस्पताल में) किया जा सकता है, लेकिन यह जमानत देने का आधार नहीं हो सकता है। मेहता ने आगे तर्क दिया, “उल्लिखित बीमारियां (जमानत मांगने के लिए) जीवनशैली हैं जिन्हें अस्पताल में प्रबंधित किया जा सकता है।” इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने जवाब दिया, “देखिए अगर कोई 35 साल का है, तो कुछ अलग मानक लागू होंगे। लेकिन बहुत सी चीजों पर गौर करना होगा। उम्र और व्यावसायिक खतरे हो सकते हैं।”
कपिल सिब्बल ने बताई हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करने की वजह
वहीं पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश में तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक कि यह गलत न हो। उन्होंने कहा, “जब तक यह इतना गलत नहीं है कि लोगों की अंतरात्मा हिल जाती हो, तब तक उच्च न्यायालय के जमानत आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता है।”