सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (13 मई) को केंद्र से राज्यों को मनरेगा के लिए सारी बकाया राशि और जरूरी धन देने को कहा है। अदालत ने निर्देश दिया कि वह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को उनकी मजदूरी देने में हुई देरी के लिए मुआवजे का भुगतान करे। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘सरकार वित्तीय कमी का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं छुपा सकती।’ न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति एनवी रमण के पीठ ने राज्यों को भी निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आयुक्तों की नियुक्ति करें। अदालत ने कहा कि सूखा प्रभावित इलाकों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत बनाया जाए।

पीठ ने इसके साथ ही सरकार को केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद की स्थापना करने और फसलों के नुकसान का मुआवजा सुनिश्चित करने को भी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य यह नहीं कह सकते कि वे संसद द्वारा बनाए गए कानून का पालन नहीं करेंगे। कानून का शासन राज्यों समेत सभी के लिए बाध्यकारी होता है। पीठ ने निर्देश दिया कि सूखा प्रभावित इलाकों में पूरे गर्मी के मौसम में मिड-डे-मील जारी रहना चाहिए। हालांकि अदालत ने अपने निर्देशों के क्रियान्वयन के लिए अदालत आयुक्तों की नियुक्ति करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह याचिका को निपटा नहीं रहा है। इस पर एक अगस्त को आगे सुनवाई होगी।

अदालत ने शुक्रवार (13 मई) को विभिन्न मुद्दों से संबंधित तीन हिस्सों में फैसला दिया। इससे से पहले हिस्से का फैसला 11 मई को दिया गया था। अदालत ने उस दिन कहा था कि यदि राज्य सरकारें सूखे जैसी आपदाओं के प्रति शतुरमुर्ग की तरह रवैया अपनाना जारी रखती हैं तो केंद्र अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकता क्योंकि आम आदमी संबंधी मुद्दों के समाधान की जिम्मेदारी उस पर है। उसने सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए थे।

पीठ ने कहा था कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें किसी गहराते संकट या उभरते संकट पर कोई कदम उठाने में विफल रहती है तो न्यायपालिका उचित निर्देश जारी करने पर विचार कर सकती है। और करना चाहिए। लेकिन एक लक्ष्मण रेखा जरूर खींची जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस मामले में इच्छाशक्ति का अभाव इस बात से पूरी तरह जाहिर होता है कि गुजरात, बिहार और हरियाणा अपने यहां मौजूद हालात के बारे में पूरे तथ्यों की जानकारी नहीं देकर इसे स्वीकार करने से ही बच रहे हैं कि सूखे जैसी स्थिति उनके यहां है, समाधान की बात तो छोड़ ही दीजिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह काफी हैरान करने वाली बात है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के लागू होने के दस साल बाद भी न तो राष्ट्रीय योजना बनाई गई और न ही कोई राष्ट्रीय आपदा समाधान कोष बनाया गया है।