सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर को हुए सामूहिक बलात्कार मामले के किशोर दोषी की रिहाई के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग की अपील सोमवार को यह कहते हुए ठुकरा दी कि इस संबंध में स्पष्ट विधायी मंजूरी होना चाहिए। न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित के पीठ ने कहा, ‘अगर कुछ किया जाना है तो यह कानून के अनुसार होगा। हमे कानून लागू करना है।’ इसके साथ ही पीठ ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष होने की हैसियत से स्वाति मालीवाल के आग्रह पर सुनवाई से इनकार कर दिया।

पीठ इस तर्क से सहमत नहीं हुआ कि किशोर अपराधी को किशोर कानून के तहत दो साल या अधिक अवधि तक सुधार की अतिरिक्त प्रक्रिया से गुजारा जा सकता है। सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा ‘क्या हम संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए किसी के जीवन की गारंटी के अधिकार को नहीं छीन रहे हैं। इसके लिए कानून में कुछ नहीं है।’

इससे पहले दिल्ली महिला आयोग की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि इस किशोर अपराधी को अतिरिक्त सुधार प्रक्रिया से गुजारे जाने की अनुमति दी जाए। दिल्ली महिला आयोग के वकील ने बाहर आने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निराशा जाहिर करते हुए कहा कि उसने किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और सुरक्षा) कानून के प्रावधानों पर विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि किशोर को सुधार प्रक्रिया से गुजरना होगा और खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि उसके सोच को कट्टरपंथी बनाने का प्रयास भी किया गया था।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता पिंकी आनंद ने दिल्ली महिला आयोग की दलीलों का समर्थन करते हुए कहा कि किशोर को सुधार प्रक्रिया जारी रहते तक निगरानी में रखा जा सकता है। पीठ ने कहा ‘कानून बनाए बिना आप उनका समर्थन कर रहे हैं।’ साथ ही पीठ ने कहा ‘इस संबंध में कोई विधायी मंजूरी होनी चाहिए।’
पीठ ने कहा ‘हम आपकी चिंता साझा करते हैं लेकिन विधायी मंजूरी के बिना कुछ नहीं कर सकते।’ पीठ के अनुसार, अवधि को तीन साल से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने 19-20 दिसंबर की आधी रात दिल्ली महिला आयोग की याचिका पर तत्काल सुनवाई करते हुए किशोर की रिहाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। देर रात करीब दो बजे दिए गए अपने आदेश में न्यायालय के अवकाश पीठ ने मामले की सुनवाई सोमवार के लिए नियत की थी। रविवार को जारी और एक गैर सरकारी संगठन को भेजी गई विज्ञप्ति में कहा गया है कि अब 20 साल के हो चुके इस किशोर ने हमलावरों में से सर्वाधिक क्रूरता की थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के खिलाफ दिल्ली महिला आयोग की विशेष अनुमति याचिका को प्रधान न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के अवकाश पीठ के पास भेज दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने किशोर की रिहाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को अदालत के पंजीयक ने बताया कि मामला अवकाश पीठ को भेज दिया गया है। इसके बाद किशोर दोषी की रिहाई का विरोध करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुकृष्ण कुमार और देवदत्त कामथ सहित अन्य वकील देर रात करीब डेढ़ बजे न्यायमूर्ति गोयल के आवास पर पहुंचे। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील में कहा गया कि उसे रिहा करने का जब फैसला किया गया तो उसकी मानसिक स्थिति का कोई आकलन नहीं किया गया।

इस किशोर सहित छह व्यक्तियों ने 16 दिसंबर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में 23 वर्षीय एक युवती पर क्रूरतापूर्वक हमला कर उससे सामूहिक बलात्कार किया था। इस नृशंसता में गंभीर रूप से घायल पीड़ित ने 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था।

सुनवाई अदालत ने सामूहिक बलात्कार और हत्या के इस मामले में मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को मौत की सजा सुनाई जिसकी बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने पुष्टि कर दी। इन दोषियों की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मामले के एक आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। उसकी मौत के बाद उसके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी गई।