सुप्रीम कोर्ट ने ‘ताजमहल’ को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगाई। कहा कि एक बार ताज चला गया तो दूसरा मौका नहीं मिलेगा। ताजमहल की रक्षा करने का मतलब है कि इस मकबरे के चारों ओर स्थित सभी चीजें जो मुगल बादशाह शाहजहां ने 1632 में अपनी पत्नी मुमताज की याद में यहां बनावाई थी, की रक्षा करना। उसका संरक्षण करना। ताजमहल की सुरक्षा के लिए प्रदूषण और हरित क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए एक दृष्टिपत्र तैयार करने की जरूरत है। इस धरोहर के संरक्षण के लिए दूसरा मौका नहीं मिलेगा। द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने कहा कि, ” मकबरा केवल केंद्रित वस्तु है। इसके आसपास के जंगल, यमुना नदी और ताजमहल को प्रदूषण से बचाने की जरूरत है। जस्टिस लोकुर ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि, “याद रखिए, एक बार ताजमहल चला गया तो दूसरा चांस नहीं है।”
खंडपीठ ने कहा कि, “ताज ट्रैपेजियम जोन के विजन डॉक्यूमेंट की जांच की जानी चाहिए और आसपास के खतरनाक उद्योगों को जिनसे ताजमहल और इसके आसपास के क्षेत्रों को नुकसान पहुंच रहा है, को बंद करें।” साथ ही खंडपीठ ने यह भी जानना चाहा कि इस इलाके में अभी कितने उद्योग, होटल और रेस्टूरेंट चल रहे हैं। 1996 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, “ताजमहल को खतरा सिर्फ पारंपरिक कारणों से नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी इसके लिए जिम्मेदार है। औद्योगिक उत्सर्जन, ईंट भट्टियां, वाहन यातायात और जेनरेटर-सेट ताज ट्रैपेजियम जोन के आसपास प्रदूषित हवा जमा हो रही है। इस वजह से स्मारक का रंग धीरे-धीरे पीला पड़ता जा रहा है।” जस्टिस लोकुर ने पूछा, “क्या 1996 के निर्देशों का पालन किया जा रहा है? उस फैसले के अनुसार इलाके में 511 उद्योग थे। क्या अभी भी 511 है या इसकी संख्या बढ़कर 600 या 700 हो गई।” बता दें कि ताज ट्राइपेजियम जोन करीब 10400 वर्ग किलोमीटर का है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई योजना और वास्तुकला स्कूल के पर्यावरण अध्ययन विशेषज्ञ प्रोफेसर मीनाक्षी धोते ने अदालत को सूचित किया कि एक सर्वेक्षण जारी है। उन्होंने कहा कि, ” हालांकि, राज्य सरकार ने उद्योगों की एक सूची दी है लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया और कहा कि यह “गलत” था और इसे संशोधित करने की आवश्यकता थी।”