नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विधान सभा भंग करने के लिए आम आदमी पार्टी की याचिका का आज निबटारा कर दिया। इससे पहले, केन्द्र सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि इस बारे में पहले ही निर्णय लिया जा चुका है। प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘‘विधान सभा भंग की जा चुकी है। याचिका का निबटारा किया जा रहा है।’’
न्यायालय ने आप पार्टी के वकील प्रशांत भूषण को यह दलील देने की अनुमति नहीं दी कि निर्वाचन आयोग को यथाशीघ्र चुनाव कार्यक्रम घोषित करने का निर्देश दिया जाए। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘अब निर्वाचन आयोग मामला अपने हाथ में लेगा।’’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा शामिल थे।
इससे पहले, न्यायालय ने दिल्ली में सरकार गठन की संभावना तलाशने के उपराज्यपाल नजीब जंग के हाल के प्रयासों पर संतोष व्यक्त करते हुये कहा था कि उन्हें कुछ और वक्त दिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने आप पार्टी से आज तक इंतजार करने के लिये कहा था और टिप्पणी की थी कि हो सकता है कि कुछ राजनीति दलों के बाहर से समर्थन के साथ अल्पसंख्यक सरकार बन जाए। इसलिए उपराज्यपाल को कुछ और समय दिया जाना चाहिए। आप का कहना था कि दिल्ली में अब सरकार गठन की कोई संभावना नहीं है।
केन्द्र ने न्यायालय से कहा था कि राष्ट्रपति ने भाजपा को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने के उपराज्यपाल के प्रस्ताव को अपनी सहमति प्रदान की थी।
पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव में 70 सदस्यीय विधान सभा में 31 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। उसे अकाली दल के एक विधायक का समर्थन भी प्राप्त था। लेकिन बाद में उसके तीन सदस्य हर्ष वर्द्धन, रमेश बिधूड़ी और परवेश वर्मा लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गए थे। इसलिये उसकी संख्या घटकर 28 ही रह गयी थी।
बहुमत से चार सदस्य कम रह जाने के कारण भाजपा ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया था। भाजपा का कहना था कि वह सत्ता पर कब्जा करने के लिये ‘अनुचित तरीके’ नहीं अपनायेगी।
विधान सभा में आप के 28 सदस्य थे और उसने कांग्रेस के आठ सदस्यों के समर्थन से सरकार का गठन किया था। उसकी संख्या भी बाद में 27 रह गयी थी क्योंकि आप ने अपने विधायक विनोद कुमार बिन्नी को पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा 14 फरवरी को इस्तीफा दिये जाने के बाद संप्रग सरकार ने यहां राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।