बंगलुरु की घटना और दिल्ली के प्रगति मैदान में सात से 15 जनवरी तक चलने वाले विश्व पुस्तक मेले का मुख्य विषय स्त्री और स्त्री केंद्रित लेखन है। लेखिकाएं इसे कैसे देखती हैं? साहित्यकार गीताश्री कहती हैं कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का समय है, और इसी का असर है पुस्तक मेले की विषयवस्तु मानुषी होना। वे कहती हैं कि आज के समय में बहुत ज्यादा संख्या में स्त्रियां लिख रही हैं। स्त्री लेखन को हमेशा से मुख्यधारा से अलगाने की कुचेष्टा होती रही है, उन्हें केंद्र में नहीं आने देने और हाशिए पर रखने की साजिश होती रही है। लेकिन वक्त बदल चुका है और स्त्रियां अपनी आजाद कलम के साथ केंद्र पर कब्जा कर रही हैं और उन्हें हाशिए पर रखना आसान नहीं है। इस बार पुस्तक मेले में गीताश्री के दो कहानी संग्रह-‘डाउनलोड होते हैं सपने’ और ‘गौरतलब कहानियां’ पाठकों से मुखातिब होंगे। साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता रमणिका गुप्ता का कहना है कि नए साल के जश्न पर बंगलुरु में जो हुआ वह बताता है कि आज भी हमारा समाज नहीं बदला है और हम ठहरी हुई मानसिकता में जी रहे हैं। स्त्री विमर्श पर जितनी भी बात हो कम है और पुस्तक मेले का थीम इसे रखना अच्छी पहल है। रमणिका गुप्ता बताती हैं कि उन्होंने पुस्तक मेले के आयोजकों को सलाह दी थी कि मेले में आदिवासी लेखन पर अलग से पंडाल रखा जाए, लेकिन शायद ऐसा नहीं होगा। आदिवासियों, वंचितों के लेखन को जगह दिए बिना स्त्री विमर्श अधूरा है और अब देखना है कि इस बार पुस्तक मेला इन मुद्दों को कितना छू पाता है।
साहित्यकार अनीता भारती का कहना है कि पुस्तक मेले का विषयवस्तु महिला लेखन तो रखा गया है लेकिन यह देखना है कि कहीं यह सिर्फ सवर्ण महिला विषयवस्तु बन कर नहीं रह जाए। मुझे पूरी आशंका है कि पुस्तक मेले के मंचों पर वही दबदबे वाले 20 से 25 चेहरे होंगे और दलित, आदिवासी लेखिकाओं को कोई तवज्जो नहीं दी जाएगी। यह देखने वाली बात होगी कि इसमें कितनी दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग की लेखिकाएं वक्ता के तौर पर शामिल होंगी। इस बार पुस्तक मेले में अलग मिजाज की किताब बाकी पेज 8 पर
‘पतनशील पत्नियों के नोट्स’ भी पाठकों को मिलेगी और देखना यह है कि स्त्री लेखन के इस अलग स्वर को पाठकों की कैसी प्रतिक्रिया मिलती है। किताब की लेखिका नीलिमा चौहान कहती हैं कि हम बेहतरीन वक्त में हैं या कि शायद बदतरीन वक्त में हैं। स्त्रियों पर स्त्रियों के लेखन का उत्सव ‘मानुषी’ के रूप में पुस्तक मेले में हो रहा है और जो बंगलुरु में हो रहा है उसे जाने देते हैं, बहुत दूर है न शायद। खैर…स्त्री के लेखन का उत्सवीकरण किया जाना है तो हमें उसके स्त्री होने के साथ सहज होना होगा। उसे ऐसे नैतिक पैमानों पर कसना छोड़ना होगा जो उन बाकी इंसानों से अलग हों। मेरे लिए ‘मानुषी’ भाषा की सारी औरताना ध्वनियों और आहटों का त्योहार है।
विश्व पुस्तक मेला न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने गुरुवार को पत्रकारों को बताया कि मेले का मुख्य विषय न्यास के 60 वर्ष पूरे होने पर होगा और इसकी विषयवस्तु ‘मानुषी’ है जो महिलाओं द्वारा एवं महिलाओं पर लेखन प्रस्तुत करती है। इस बार पुस्तक मेले में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान से कोई आवेदन नहीं आया, हालांकि देश का एक प्रतिनिधि मेले में शिरकत करेगा। इस बार चीन, मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, जापान, नेपाल, पोलैंड, रूस, स्पेन, श्रीलंका सहित लगभग 20 देश शिरकत कर रहे हैं।
शर्मा ने कहा कि आइटीपीओ के सहयोग से आयोजित होने वाले इस मेले में नकदरहित भुगतान की पूरी व्यवस्था की गई है। आइटीपीओ ने बीएसएनएल के साथ मिल कर विशेष इंतजाम किए हैं। आधा दर्जन से ज्यादा एटीएम का इंतजाम किया गया है और कई सचल एटीएम भी होंगे। हालांकि, प्रगति मैदान में पुनर्निर्माण का काम चलने की वजह से इस बार जगह की कमी रही और इसलिए इस बार कम प्रकाशकों को जगह मिल सकी। मेले का उद्घाटन सात जनवरी को मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री (उच्च शिक्षा) डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडे करेंगे। इस मौके पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ओड़िया लेखिका डॉक्टर प्रतिभा राय और भारत में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल के राजदूत टोमाश कोजलौस्की भी मौजूद रहेंगे। मेले की विषयवस्तु ‘मानुषी’ से जुड़ा कैलेंडर 10 जनवरी को मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जारी करेंगे। मेले के टिकट प्रगति मैदान के अलावा 50 मेट्रो स्टेशनों से लिए जा सकते हैं और स्कूल की वर्दी में आने वाले छात्रों का प्रवेश निशुल्क होगा। उन्होंने कहा कि हमने आइटीपीओ से पुस्तक मेले के लिए प्रवेश शुल्क खत्म करने का अनुरोध किया है।
