हमारा अगर सेलेक्शन नहीं हुआ तो हम आप लोगों से नजरें नहीं मिला पाएंगे। आई एम सॉरी। मैं अपनी मर्जी से अपनी लाइफ खत्म करती हूं। अंजलि आनंद ने कोटा में 31 अक्तूबर को ये लाइनें लिखी थीं। दिवाली पर घर जाने से 8 दिन पहले। ये लाइनें लिख कर उसने कोटा के राजीव गांधी नगर स्थित अपने होस्टल के कमरे में खुद को खिड़की से लटका कर जान दे दी।
18 साल की अंजलि 18 महीने पहले ही कोटा पहुंची थी। मुरादाबाद से। 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद। डॉक्टर बनने का सपना लेकर। कोटा पहुंच कर वह एलेन कॅरिअर इंस्टीट्यूट के 77 हजार छात्रों में से एक बन गई थी। खुदकुशी करने में अंजलि अकेली नहीं थी। जिस दिन उसने जान दी, उसी दिन 16 साल की हर्षदीप कौर ने भी कोटा के जयश्री विहार में खुदकुशी कर ली थी। वह अपने परिवार के साथ रहती थी। मई में उसने कोचिंग जाना छोड़ दिया था।
कोटा पुलिस के रिकॉर्ड बताते हैं कि इस साल अब तक 24 छात्रों ने खुदकुशी कर ली है। 2014 में 11 और इससे एक साल पहले 13 छात्रों ने जान दी थी। ज्यादातर केस में आत्महत्या का कारण पढ़ाई का दबाव बताया गया है। जब हमने इन मामलों की छानबीन की तो पता चला कि कोचिंग हब के रूप में देश भर में मशहूर कोटा अब फैक्ट्री का रूप ले चुका है। जहां छात्रों को कच्चा माल समझा जाता है और चौबीसों घंटे बहुमंजिली इमारतों में उनके साथ ‘माल तैयार करने’ की कवायद चलती रहती है। यहां 300 से भी ज्यादा कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं। इनमें एलेन, रेजोनेंस, बंसल, वाइब्रैंट और कॅरिअर प्वाइंट पांच बड़े इंस्टीट्यूट्स हैं। इनके पास डेढ़ लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स हैं। इन्होंने इन्हें एक ऐसे सिस्टम में ढाल दिया है जहां नाकामी का मतलब शर्म, डर और अंतिम अंजाम मौत होती है।
मुरादाबाद के रेलवे हरथाला कॉलोनी में दो कमरों के किराए के घर में अंजलि के माता-पिता रहते हैं। 42 साल की राजकमारी ने रोते हुए बताया, ‘कोटा में पढ़ाई करने की उसकी मांग मान कर मैंने अपनी बेटी की जान ले ली।’ पिता एमके सागर ने बताया, ‘जब मैंने मुर्दाघर में बेटी की लाश देखी तो मैं उसे झकझोर कर जगाना चाहता था और अपने साथ मुरादाबाद ले आना चाहता था।’ 49 साल के सागर ने बताया कि एक साल ड्रॉप करने के बाद पहले प्रयास में जब उसे मेडिकल में दाखिला नहीं मिला तो हमने उसे मेरठ में कोचिंग लेने के लिए कहा, पर वह कोटा लौटने पर अड़ी थी। बीमा कंपनी में एडमिनिस्ट्रेशन अफसर की नौकरी करने वाले सागर ने बताया कि प्राइवेट कॉलेज में दाखिला कराना उन जैसे लोगों के वश की बात नहीं। ऐसे में उन्हें कोटा अच्छा विकल्प लगा था। एक लाख रुपए फीस के अलाव वह बेटी को हर महीने 13 हजार रुपए भेजा करते थे।
अंजलि कोटा के साक्षी हॉस्टल में रहती थी। यह एक मकान है, जिसे हॉस्टल बना दिया गया है। इसमें 30 छात्र रहते हैं। अंजलि की मौत के बाद पांच लड़कियां हॉस्टल छोड़ चुकी हैं। वार्डन भावना राठौड़ से जब हमने पूछा कि आखिर अंजलि पर किस तरह का दबाव था, तो उनका कहना था- दबाव कैसा? वह अपनी मर्जी से यहां रहने आई थी। वह पढ़ाई करती थी, लेकिन यहां की बाकी लड़कियों की तरह नहीं।
जिस दिन अंजली ने खुदकुशी की उसी दिन जान देने वाली हर्षदीप कौर के परिवार ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन अंजलि के घर मुरादाबाद से 140 किमी दूर गाजियाबाद में मातम मना रहे एक और परिवार से हमारी बात हुई। यह परिवार 17 साल के सार्थक यादव का है। उसने 7 जून को कोटा में अपने ननिहाल में खुदकुशी कर ली थी। उसके आखिरी शब्द थे- मम्मी, मैं बहुत प्रेशर में था। सभी बोलते हैं कि 70 पर्सेंट से कम नहीं आना चाहिए। पापा के पैसे वेस्ट नहीं करना चाहता।
सार्थक भी एलेन कॅरिअर इंस्टीट्यूट का स्टूडेंट था। उसकी मां ममता ने रोते हुए कहा, ‘मुझे आज भी यकीन नहीं हो रहा कि मेरे मासूम बच्चे ने जान दे दी।’ एलेन के सीनियर वाइस प्रेशर सीआर चौधरी से जब हमने बात की तो उन्होंने सारा दोष मां-बाप पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा- इन मौतों का सबसे बड़ा कारण प्रेशर है। इसके लिए मां-बाप सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। हमने कई ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे छात्रों की हिम्मत नहीं टूटे। मॉटिवेशनल लेक्चर, सुसाइड हेल्पलाइन, हमारी पत्रिकाओं में मॉटिवेशनल कहानियां छापना आदि। हमारे यहां से ऐसी घटनाएं ज्यादा इसलिए सामने आती हैं क्योंकि हमारे पास सबसे ज्यादा छात्र हैं।
लेकिन अंजलि या सार्थक के माता-पिता में से किन्हीं ने कहा कि उन्होंने अपने बच्चों पर किसी तरह का दबाव डाला था। दोनों परिवारों ने यही कहा कि रोज उनकी बच्चे से बात होती थी। कभी उन्हें कोई ऐसा संकेत नहीं मिला कि वे जान दे सकते हैं। बहरहाल, अंजलि के माता-पिता फिर से कोटा जाने की तैयारी कर रहे हैं। यह पता लगाने के लिए कि आखिर उनकी बेटी की मौत की असल वजह क्या है।
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