गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर संपन्न उपचुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में बिहार के महागठबंधन की तर्ज पर नए राजनीतिक गठजोड़ की संभावना और प्रबल हुई है। बिहार में भी दो चिर प्रतिद्वंद्वी दलों राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड ने विधानसभा चुनाव से पहले हाथ मिलाया था। महागठबंधन को जबरदस्त सफलता हासिल हुई थी। राजद को 80, जदयू को 70 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। हालांकि, जदयू के अलग होने से महागठबंधन टूट गया था, लेकिन इससे विपक्षी दलों में नई आस जरूर जगी थी। यूपी के फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों के लिए भी दो धुर विरोधी दलों सपा और बसपा ने गठजोड़ का फैसला किया था। फूलपुर के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में भी सपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। इससे राज्य में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा उभरने के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्ष के एकजुट होने की उम्मीद को मजबूती मिली है। बता दें कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली में विपक्षी दलों के लिए रात्रिभोज का आयोजन कर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ नया मोर्चा बनाने की कवायद शुरू कर दी है।
मायावती की प्रतिक्रिया से मिले सकारात्मक संदेश: लोकसभा और विधानसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बाद मायावती की बसपा हाशिए पर चली गई थी। उपचुनाव के प्रदर्शन ने उनमें भी नई जान फूंक दी है। कभी न झुकने वाली मायावती ने बुधवार (14 मार्च) को उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता और सपा सदस्य राम गोविंद चौधरी का झुकते हुए अभिवादन किया। इस राजनीतिक गर्मजोशी के कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। इसे सकारात्मक राजनीतिक संदेश के तौर पर भी देखा जा रहा है।
Leader of the opposition and Samajwadi Party member Ram Govind Choudhury met Bahujan Samaj Party Chief Mayawati in #Lucknow pic.twitter.com/NRtNNwQ70E
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
विधानसभा चुनाव में ‘बुआ-बबुआ’ के एक होने की उठी थी बात: पिछले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान बुआ और बबुआ यानी मायावती और अखिलेश यादव के एक होने की बात उठी थी। बिहार की तरह ही यूपी में भी सपा और बसपा के एक होकर बीजेपी के समक्ष एक सशक्त चुनौती पेश करने की बात जोरों से चली थी। विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा एवं सपा के कद्दावर नेता शिवपाल यादव के बीच की कलह बहुत बढ़ गई थी। ऐसे में, अखिलेश पार्टी की आंतरिक राजनीति से निपटने में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए थे। दूसरी तरफ, लोकसभा चुनावों में एक भी सीट न मिलने के बाद बसपा को विधानसभा में वापसी की उम्मीद थी। लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाले गठजोड़ ने 325 सीट जीतकर इतिहास बना दिया। भाजपा को अकेले 311 सीटें मिली थीं। वहीं, सपा को 47 और बसपा को महज 19 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी।
Leader of the opposition and Samajwadi Party member Ram Govind Choudhury met Bahujan Samaj Party Chief Mayawati in #Lucknow pic.twitter.com/6t0zPy53B9
— ANI UP (@ANINewsUP) March 14, 2018
योगी आदित्यनाथ ने करार दिया था अवसरवाद: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा-बसपा के गठजोड़ को अवसरवाद की राजनीति करार दिया था। उन्होंने बसपा का वोट सपा के पक्ष में ट्रांसफर होने की दलील को भी खारिज किया था। हालांकि, जाति समीकरण को देखते हुए बीजेपी में बेचैनी जरूर थी। उपचुनावों में सफलता मिलने के बाद सपा-बसपा गठजोड़ के कायम रहने को लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि दोनों धुर विरोधी के साथ आने से 80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा को ठोस चुनौती दी जा सकती है। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के रुख पर निर्भर करेगा कि उपुचनाव के लिए किया गया यह गठजोड़ वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी जारी रहेगा या नहीं।