अखिलेश यादव की अगुआई में सपा के कांग्रेस और लोकदल से संभावित गठजोड़ से नए राजनैतिक समीकरण पैदा होने के आसार बन गए हैं। इन समीकरणों का प्रभाव न केवल गठबंधन पर पड़ेगा, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों की हार-जीत का आंकड़ा भी पूरी तरह से गड़बड़ा सकता है। इसी वजह से उप्र में चुनाव की तारीख तय होने और आचार संहिता लागू होने के बावजूद बसपा को छोड़कर अन्य प्रमुख दल अभी उम्मीदवारों का चयन करने से कतरा रहे हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, बसपा ने किसी के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला काफी पहले ले रखा है। इसी तरह उप्र चुनाव को लेकर भाजपा भी किसी प्रमुख राजनैतिक दल से गठजोड़ नहीं कर रही है। जबकि अखिलेश यादव सपा के कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं। कांग्रेस में भी एक धड़ा इस गठबंधन का पक्षधर रहा है। ऐसे में जहां कांग्रेस और सपा, दोनों दलों के नेता अगले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट होने के बाद सीटों और उम्मीदवारों को अंतिम रूप देंगे। नरेंद्र मोदी के चेहरे और नोटबंदी समेत विकास के नाम पर उप्र के चुनावी समर में उतरने की तैयारी में लगी भाजपा भी सपा-कांग्रेस के संभावित गठबंधन के बाद उम्मीदवार घोषित करना चाह रही है।
उधर, सपा में अखिलेश यादव को एकतरफा समर्थन से पार्टी की तरफ से कई महीनों पहले घोषित उम्मीदवारों के बदले जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। गढ़ के विधायक और उप्र में राज्यमंत्री मदन चौहान के भाई अशोक चौहान को नोएडा सीट पर पार्टी उम्मीदवार घोषित किया गया था। इसी तरह दादरी से हाल ही में रवींद्र भाटी और जेवर में हरेंद्र नागर की पत्नी बेवन नागर को सपा उम्मीदवार काफी पहले घोषित किया गया था। उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से सभी उम्मीदवार जनसभा, कार्यक्रमों या जनसंपर्क कर लोगों से समर्थन मांग रहे हैं। सपा सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव ने उम्मीदवारों की जो सूची तैयार कराई थी, उनमें सपा के घोषित उम्मीदवारों की जगह अन्यों को टिकट देने की वकालत की गई थी। मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच टकराव की एक बड़ी वजह उम्मीदवारों की सूची भी रही थी। अब चूंकि पार्टी नेताओं ने एकतरफा अखिलेश यादव के पक्ष में समर्थन जताया है। ऐसे में पुराने घोषित उम्मीदवारों के नाम बदले जाने की संभावना बढ़ गई है। बताया गया है कि पिछले दो-तीन दिनों से पार्टी के घोषित उम्मीदवार भी स्थिति स्पष्ट होने के बाद चुनाव प्रचार करने का मन बना चुके हैं।