उत्तराखंड के समाज कल्याण विभाग में पांच सौ करोड़ रुपए से ज्यादा के छात्रवृत्ति घोटाले ने राज्य की सियासत में भूचाल ला दिया है। इस घोटाले में कई राजनेता, अधिकारी, कई शिक्षण संस्थाओं के प्रमुखों और मध्यस्थों के नाम आ रहे हैं। इनके गठजोड़ ने राज्य के समाज कल्याण विभाग की छात्रवृत्ति योजना को ठिकाने लगाया गया। यह घोटाला पूर्ववर्ती भाजपा और कांग्रेस सरकारों के समय का है, जिसका जिन्न अब बाहर निकला है। यह घोटाला 2010-11 से लेकर 2016-17 के दौरान बांटी गई छात्रवृत्ति में हुआ। इस घोटाले की जांच सूबे की सरकारी एजंसी एसआइटी कर रही है। राज्य सरकार ने इस मामले की जांच में लगे एसआइटी के प्रमुख मंजूनाथ का तबादला हरिद्वार से एसपी चमोली कर दिया था और नई एसआइटी का गठन किया था। परंतु हाईकोर्ट ने इस मामले में दखंलनदाजी कर मंजूनाथ के तबादले के आदेशों और नई एसआइटी के गठन को निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के आदेश पर मंजूनाथ की अध्यक्षता में फिर से एसआइटी का गठन हुआ।

मंजूनाथ के तबादले के खिलाफ उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने न्यायालय से अनुरोध किया था कि न्यायालय के निगरानी में सीबीआइ छात्रवृत्ति घोटाले की जांच करे। छात्रवृत्ति घोटाले का मुख्य केंद्र देहरादून और हरिद्वार जनपद हैं। न्यायालय के सख्त रवैये के बाद मंजूनाथ को राज्य सरकार ने फिर से एसआइटी का प्रभारी बनाया। मंजूनाथ ने एसआइटी का प्रमुख रहते हुए जांच में यह पाया था कि कई कॉलेजों में अपने विषयों का फीस ढांचा शासन से मंजूर तक नहीं करवाया था और एक ही विषय की फीस अलग-अलग कॉलेजों में अलग-अलग वसूली जा रही थी। इससे सरकार को करीब पांच सौ करोड़ रुपए का चूना लगा।

2013 में इस घोटाले का पता चला। तब के समाज कल्याण निदेशक बीके सुमन ने चार सदस्यीय जांच दल इस घोटाले की जांच के लिए गठित किया। इस जांच दल ने हरिद्वार के सात कॉलेजों में गड़बड़ियां पकड़ी लेकिन बाद में यह जांच रिपोर्ट राजनीतिक दबाव के चलते दबा दी गई। 2016 में इस घोटाले की रकम बेतहाशा बढ़ गई। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर विद्यार्थियों ने छात्रवृत्तियां कॉलेज प्रबंधन से मिलीभगत करके वसूली। मंजूनाथ ने एसआइटी का प्रमुख होते हुए इस मामले में सख्ती बरती और कई कॉलेज प्रबंधकों पर मुकदमे दर्ज किए। समाज कल्याण विभाग के मुताबिक जिन छात्रों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति ली थी, उनमें से कई छात्रों ने मुकदमे और गिरफ्तारी के डर से छात्रवृत्ति की रकम वापस लौटाने की पेशकश की है।

हाईकोर्ट की सख्ती के बाद इस मामले में समाज कल्याण विभाग के नोडल अधिकारी समेत छह लोगों के खिलाफ डोईवाला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। एडवोकेट चंद्रशेखर करगेती की ओर से डोईवाला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। डोईवाला थाने में दर्ज मुकदमें में आइटी प्रकोष्ठ के तत्कालीन नोडल अधिकारी गीता राम नौटियाल, छात्र मयंक नौटियाल, उसके पिता मुन्ना लाल नौटियाल, तहसीलदार, लेखपाल और तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी शामिल हैं। इनके खिलाफ धारा 420, 467, 468, 471, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। छात्रवृत्ति घोटाले में आइटी प्रकोष्ठ की अहम भूमिका रही है। छात्रवृत्ति लेने वाले छात्रों ने अपनी आय के फर्जी दस्तावेज देहरादून और हरिद्वार तहसील से बनवाकर समाज कल्याण विभाग में पेश किए और लाखों रुपए की छात्रवृत्ति ली।

डोईवाला थाने में दर्ज मुकदमे के मुताबिक छात्रवृत्ति घोटाले में नामजद आरोपी मयंक ने जौलीग्रांट देहरादून हिमालयन आयुर्विज्ञान संस्थान में 2012-13 से लेकर 2017-18 की अवधि के बीच एमबीबीएस करते हुए फर्जी दस्तावेजों के आधार पर छात्रवृत्ति ली और मासिक आय का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया। एसआइटी प्रमुख मंजूनाथ का कहना है कि इस मामले की जांच निष्पक्षता से की जा रही है। जांच पूरी होने पर शासन को जांच रिपोर्ट सौंप दी जाएगी। छात्रवृत्ति घोटाले की पोल खोलने वाले उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान का कहना है कि छात्रवृत्ति घोटाले को अंजाम देने और उसे दबाने में शामिल अफसरों को राज्य सरकार निलंबित करे। राज्य के मुख्यसचिव उत्पल कुमार सिंह को लिखे पत्र में जुगरान ने बताया कि इस मामले में आइटी प्रकोष्ठ के तत्कालीन नोडल अधिकार, तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी सहित राजस्व विभाग के अधिकारियों पर मुकदमा भी दर्ज हो चुका है। ये लोग जांच प्रभावित करने के लिए तथ्यों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। पहले भी इन घोटालेबाज अधिकारियों के निलंबन के लिए राजस्व विभाग के अपर सचिव स्तर के अधिकारियों ने निलंबन की सिफारिश की थी। मगर राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।

इस मामले की जांच निष्पक्षता के साथ राज्य सरकार करा रही है। जांच रिपोर्ट आने के बाद इसका अध्ययन कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। – यशपाल आर्य, समाज कल्याण मंत्री, उत्तराखंड

इस मामले में सत्तारूढ़ दल के कई लोग फंसे हुए हैं। इसलिए राज्य सरकार इस घोटाले की जांच निष्पक्ष तरीके से कराने के लिए तैयार नहीं है और ईमानदार जांच अधिकारी को उसके पद से हटा दिया गया। इससे जाहिर होता है कि राज्य सरकार की मंशा ठीक नहीं है।
– हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड