SC/ST एक्ट के तहत FIR होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है। पीड़ित FIR दर्ज होने के बाद मुआवजे का हकदार नहीं होगा। दोष सिद्ध होने के बाद ही पीड़ित को मुआवजा मिलेगा, न कि एफ़आईआर दर्ज करने या अदालत में आरोप पत्र जमा करने पर।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST Act) के तहत दर्ज मामलों में अभियुक्त के दोषी सिद्ध होने के बाद ही पीड़ित को मुआवजा मिले। कोर्ट ने कहा कि हम यह ट्रेंड देख रहे हैं कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में मुआवजा मिलने के बाद पीड़ित अभियुक्त से समझौता कर लेते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने इसरार अहमद और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
दरअसल, याचियों ने एससी-एसटी एक्ट के तहत रायबरेली की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी। याचियों का कहना था कि उनकी वादी के साथ सुलह हो चुकी है।
करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का कहना है कि उसने कई मामलों में देखा है कि सरकार से मुआवजा हासिल करने के बाद, शिकायतकर्ता मुकदमे को रद्द करने के लिए आरोपी के साथ समझौता कर लेते हैं। साथ ही पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर कार्यवाही को रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर की जाती है। उच्च न्यायालय ने कहा कि इस प्रक्रिया में करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है।
दरअसल, अनुसूचित जाति के एक शिकायतकर्ता ने 2019 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के नसीराबाद थाने में आरोपी इसरार अहमद और अन्य के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज कराई थी। जांच अधिकारी ने 2 फरवरी 2019 को विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट रायबरेली की अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। राज्य सरकार ने पीड़ित को 75,000 रुपए का मुआवजा भी दिया था।
मुकदमा खारिज करने की याचिका: जिसके बाद अब दाखिल याचिका में मांग की गई थी कि एससी-एसटी एक्ट के तहत रायबरेली की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और मुकदमे को खारिज कर दिया जाए, क्योंकि इस मामले में वादी के साथ समझौता हो चुका है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली पर साथ ही कहा कि वादी को मुआवजे के तौर पर राज्य सरकार की तरफ से 75 हजार रुपये मिल चुके हैं और अब बाद में समझौते की बात सामने आ रही है। अदालत ने याचिकाकर्ता को आरोपी के खिलाफ आरोप वापस लेने और स्पेशल एससी/एसटी एक्ट जज रायबरेली की अदालत में कार्यवाही रोकने की इजाजत दी।