उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। पीठ भाजपा नेता गगन भगत की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। भगत भंग विधानसभा के सदस्य थे।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि हम राज्यपाल के फैसले में दखल नहीं देना चाहते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने पीठ को बताया था कि मलिक ने विधानसभा भंग कर दी है, जबकि सरकार बनाने का दावा करने वाले दो पत्र उनके सामने थे। राज्य की भंग की गई विधानसभा के सदस्य गगन भगत की ओर से पेश वकील जयदीप गुप्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का फैसला लेने से पहले हरसंभव प्रयत्न करना चाहिए था कि क्या राज्य में सरकार बनने की गुंजाइश है? बता दें कि राज्यपाल ने नाटकीय घटनाक्रम में, निलंबित जम्मू-कश्मीर विधानसभा को 21 नवंबर को आनन-फानन में भंग कर दिया था।

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इसके कुछ ही घंटे पहले पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने प्रतिद्वंद्वी नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया था। इसके बाद दो सदस्यीय पीपल्स कॉन्फ्रेंस ने भाजपा और अन्य दलों के 18 विधायकों के समर्थन के दम पर सरकार बनाने दावा पेश किया था। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को पत्र में बताया था कि उनकी पार्टी में 29 विधायक हैं| इसके आलावा उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15 विधायकों तथा कांग्रेस के 12 विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है।

हालाँकि राज्यपाल द्वारा विधान सभा भंग करने के निर्णय की घोषणा राज भवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में की गयी थी। महबूबा मुफ्ती नीत पीडीपी और भाजपा के गठबंधन सरकार के पतन के बाद 19 जून को राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया था। जो कि 18 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा। जबकि विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर 2020 तक है।