सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट बनाने की अपनी पुरानी मांग को दोहराया है। अखिलेश ने शनिवार को लखनऊ में कहा कि यह समुदाय के सैनिकों की बहादुरी एवं बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यादव ने कई पूर्व सैनिकों को सम्मानित करने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि अहीर रेजिमेंट की मांग नई नहीं है और इसे पहले भी समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में शामिल किया गया था। 

जिन पूर्व सैनिकों को इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया, उनमें 1962 के युद्ध में लड़ने वाले जवान भी शामिल थे। 

अखिलेश यादव ने कहा, “आज जब हम इन बहादुर सैनिकों का सम्मान कर रहे हैं, जिन्होंने देश और उसकी जमीन की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ाई लड़ी तो हम उनके सम्मान और रेजिमेंट के सम्मान के लिए सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग को भी फिर से दोहराते हैं।” 

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर दूसरी रेजिमेंट बनाने की भी मांगें हैं, तो उन्हें भी आगे आना चाहिए। 

अखिलेश यादव ने भारत की आजादी और देश की रक्षा में योगदान देने वाले सैनिकों से मिलना व उन्हें सम्मानित करने को सौभाग्य बताया। यादव ने चीन के साथ 1962 के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि ऐतिहासिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि कैसे भारतीय सैनिकों ने रेजांग ला में देश की जमीन की रक्षा के लिए ‘आखिरी गोली और आखिरी आदमी तक’ लड़ाई लड़ी। 

‘जब हम मांग करते हैं तो गुजरात में मेरा पुतला फूंका जाता’

मिलिट्री स्कूल खोले सरकार

यादव ने केंद्र सरकार से उत्तर प्रदेश में मिलिट्री स्कूल खोलने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि देश में केवल पांच सैन्य स्कूल हैं, जिसमें राजस्थान व कर्नाटक में दो-दो और हिमाचल प्रदेश में एक स्कूल शामिल है जबकि उत्तर प्रदेश में इस प्रकार का एक भी स्कूल नहीं है। 

सपा प्रमुख ने कहा, “जब प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री दोनों उत्तर प्रदेश से हैं, तो हमारी मांग है कि लखनऊ, इटावा, कन्नौज और वाराणसी में सैन्य स्कूल खोले जाएं।” 

इस मौके पर रामचंद्र सिंह यादव नाम के 87 वर्षीय पूर्व सैनिक ने भी अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग की। रामचंद्र के परिवार की चौथी पीढ़ी सेना में सेवा दे रही है। उन्होंने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए कहा कि उनके (मुलायम के) रक्षामंत्री के कार्यकाल में शहीद सैनिक का पार्थिव शरीर घर लाने की व्यवस्था के साथ सैनिकों का वेतन भी बढ़ाया गया नहीं तो सैनिक अपने वेतन में एक बकरी भी नहीं खरीद सकते थे।

क्या भारतीय सेना में कभी अहीर रेजिमेंट थी?