भारतनाट्यम नृत्यांगना के रूप में रुचि गुप्ता युवा नाम है। उन्होंने शर्मिष्ठा मलिक से शुरुआती नृत्य सीखा। फिर गुरु सरोजा वैद्यनाथन की शिष्या रहीं। इन दिनों गुरु किरण और संध्या सुब्रमण्यम से नृत्य की बारीकियां सीख रही हैं। रुचि मानती हैं कि कलाकारों के लिए जिंदगी भर सीखने की प्रक्रिया जारी रहती है। अगर, वह सीखना जारी रखता है तब उसकी यात्रा सुखद बन जाती है। रुचि याद करती हैं उस खास शाम को जब उन्होंने अपनी गुरु की परंपरा में एक कड़ी जोड़ने का प्रयास किया। यह अवसर था, उनकी शिष्या आर्या के अरंगेत्रम समारोह का।
कृति नाट्य निकेतन की ओर से कर्नाटक संघ सभागार में नृत्य समारोह आयोजित था। इस समारोह में आर्या विमल रैना ने पुष्पांजलि से अपनी प्रस्तुति का आगाज किया। यह राग नागस्वरावली और आदि ताल में निबद्ध था। दूसरी प्रस्तुति कृति राग वाचस्पति और रूपकम ताल में थी। रचना ‘प्रणवमुदम विनायकम’ पर आधारित कृति में गणपति के रूप का चित्रण था। राग आरभि और आदि ताल में निबद्ध जतीस्वरम आर्या की प्रस्तुति में शामिल था। इसमें जतीस, पल्लवी, अनुपल्लवी और चरणम का विस्तार मोहक था। ‘सा-रे-ग-प-ध’ के बोलों पर आधारित सरगम के लय व ताल पर संतुलित अंग, पद व हस्त संचालन आर्या ने पेश किए।
अगली पेशकश राग मालिका और मिश्रम ताल में निबद्ध शब्दम थी। इसमें शिष्या आर्या ने साहित्यम पर संचारी भाव पेश करते हुए महाभारत से द्रौपदी वस्त्रहरण प्रसंग निरूपित किया। उनका मुखाभिनय और आंगिक अभिनय काफी उम्दा थे। यह गुरु सरोजा वैद्यनाथन की नृत्य रचना थी। वरणम में विरहोत्कंठिता के भाव का विवेचन अच्छा था। इसमें मदुरै के मुख्य देवता भगवान सुंदेश्वर, राजशेखर, नीलकंठ, नटराज से नायिका प्रणय निवेदन करती है। वरणम में नायिका के भावों को शिष्या आर्या ने अपनी क्षमता के अनुकूल उकेरा। यह रचना ‘सखीए स्वामी’ राग खमाज और आदि ताल में निबद्ध थी।
वहीं, अगली पेशकश पद्म मुत्थुगारी यशोदा में कृष्ण लीला का विवेचन सहजता लिए थी। महाराजा स्वाती तिरूनाल की रचना ‘शंकर श्री गिरिश’ में आर्या ने भरतनाट्यम के कठिन करणों और अडवुओं के प्रयोग के जरिए शिव के मोहक रूप उकेरे। यह नृत्य राग हंसानंदी और आदि ताल में निबद्ध था। उन्होंने अपनी पेशकश का समापन परंपरागत तिल्लाना से किया। यह पेशकश राग कन्हड़ा और आदि ताल में थी। दरअसल, युवा नृत्यांगना रुचि गुप्ता से उनकी शिष्या आर्या पिछले आठ सालों से नृत्य सीख रही हैं। अरंगेत्रम प्रस्तुति गुरु और शिष्य दोनों के लिए चुनौतिपूर्ण होती है। एक ओर वह पल रुचि गुप्ता के वर्षों की मेहनत का परिणाम था, वहीं दूसरी ओर यह आर्या के लिए अपनी क्षमता का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। रुचि और आर्या की प्रतिभा को देखकर सहज अहसास होता है कि कश्मीर से कन्याकुमारी को वाकई कला-संस्कृति जोड़ने में सक्षम है। प्रस्तुति को रसमय बनाने में गायिका सुधा रघुरामन, बांसुरी वादक जी रघुरामन, मृदंगम वादक एन पद्मनाभन और वायलिन वादक वीएसके अन्नादुर्रई ने सहयोग किया। रुचि ने नटुवंगम पर संगत किया।

