राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की अवध इकाई ने मंगलवार (13 सितंबर) को ईद उल अजहा (बकरीद) के मौके पर बकरे या किसी अन्य जानवर की कुरबानी नहीं देने का फैसला किया है। मंच बकरीद के मौके पर बकरे के आकार का केक काटेगा। मंच के लखनऊ कार्यालय में बकरे के आकार का पांच किलो का केक काटा जाएगा। मंच के सदस्य अपने घरों पर बकरीद पर बिरयानी नहीं बनाएंगे। वो अपने दोस्तों को सेवई और दही वड़ा की दावत देंगे। अवध प्रांत के संयोजक रईस खान ने कहा कि वो मुस्लिम समाज को संदेश देना चाहते हैं कि “बकरीद भी केक काटकर मनाई जा सकती है जिस तरह लोग अपनी सालगिरह मानते हैं।” खान ने कहा कि अगर इसे लोगों का समर्थन मिला तो वो दूसरे प्रांतों में भी इसका प्रचार करेंगे।

मंच के सह-संयोजक हसन कौसर ने कहा, “बकरीद मानवत का संदेश देती है। हम अल्लाह को अपने बच्चे भी कुरबान कर सकते हैं लेकिन बगैर किसी वजह से बकरे की हत्या करके उसका मांस खाना जायज नहीं है।” हालांकि मंच के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफज़ल से जब अवध प्रांत के इस योजना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जानकारी से अनभिज्ञता जताई। बीफ के मुद्दे के कारण विभिन्न सरकारें इस बकरीद पर विशेष एहतियात बरत रही हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर में बकरीद पर इस बारे पिछले सालों जैसी रौनक नहीं देखने को मिल रही है। कश्मीर में दो महीने से जारी हिंसा में तीन पुलिसवालों समेत 75 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं सैकड़ों घायल हुए हैं।

क्यों मनाते हैं बकरीद?

ईद-उल-अज़हा का शाब्दिक अर्थ हुआ क़ुरबानी की ईद। मुसलमानों का ये प्रमुख त्योहार है। इसे रमजान के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार पैगंबर इब्राहिम को भगवान को अपनी सबसे प्यारी चीज की कुरबानी देनी थी। इब्राहिम ने अपने पुत्र इस्माइल को अल्लाह के लिए कुरबान करने का फैसला किया क्योंकि वो दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार अपने बेटे से करते थे। मान्यता के अनुसार इब्राहिम बेटे की कुरबानी देने ही वाले थे कि भगवान ने उन्हें रोक दिया। तब से मुसलमान इस दिन ईद-उल-अज़हा मनाते हैं। इस दिन मुसलमान ईश्वर के प्रति अपने समर्पण के प्रतीक के तौर पर किसी जानवरी की कुरबानी देते हैं।

Read Also: कश्मीर: बकरीद पर पहले जैसी चमक नहीं