लाल किले पर हमले के संवेदनशील मामले में लश्करे तैयबा के आतंकवादी एवं मौत की सजा पाये एकमात्र दोषी मोहम्मद आरिफ को अपने मृत्युदंड को चुनौती देने का मंगवार को एक और अवसर मिल गया जब उच्चतम न्यायालय ने उसकी खारिज की जा चुकी पुनर्विचार याचिका पर नये सिरे से सुनवाई करने को मंजूरी दे दी।
प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के दो सितंबर, 2014 के फैसले में सुधार कर दिया जिसके तहत उन सभी दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं के मामले में खुले न्यायालय में सुनवाई का लाभ उपलब्ध था जिनकी पुनर्विचार याचिकायें लंबित थीं और जिनकी सजा पर अमल नहीं हुआ था।
शीर्ष न्यायालय ने अपने बहुमत वाले फैसले में कहा था कि ऐसे मामलों में मौखिक सुनवाई के लिए अधिकतम सीमा 30 मिनट की होती है। उसने यह स्पष्ट किया कि एक सजा पाये दोषी, जिसकी पुनर्विचार याचिका खारिज हो चुकी है तथा जिसे सजा अभी नहीं दी गयी है, वह अपना मामला फिर से खुलवाने के लिए शीर्ष न्यायालय से गुहार लगा सकता है।
उसने कहा था, ‘‘यह उसमें भी लागू होगा जहां पुनर्विचार याचिका पहले ही खारिज कर दी गयी है किन्तु मृत्युदंड अभी तक नहीं दिया गया है। ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता अपने फैसले की तिथि से एक माह के भीतर अपनी पुनरीक्षा यािचका को फिर से खोलने के लिए आवेदन कर सकता है। बहरहाल, ऐसे मामले जहां उपचारात्मक याचिका भी खारिज हो चुकी हो, ऐसे मामलों को फिर से खोलना उचित नहीं होगा।’’
आरिफ ने अपनी याचिका में कहा कि उसका मामला इसी श्रेणी में आता है क्योंकि उसकी पुनर्विचार याचिका और सुधारात्मक याचिका शीर्ष अदालत का वह महत्वपूर्ण फैसला आने से पहले ही खारिज कर दी गयी थीं जिसमें मौत की सजा पाने वाले दोषियों को यह लाभ दिया गया था कि उनकी पुनर्विचार याचिका पर तीन न्यायाधीशों की पीठ खुले न्यायालय में सुनवाई करेगी।
सितंबर, 2014 के फैसले से पहले ऐसे दोषियों की पुनर्विचार याचिका और सुधारात्मक याचिका पर खुले न्यायालय में सुनवाई नहीं होती थी और इन पर चैंबर कार्यवाही के दौरान निर्णय किया जाता था। आरिफ की पुनर्विचार याचिका दो सितंबर, 2014 को खारिज की गयी थी।
शीर्ष अदालत ने 10 अगस्त, 2011 को आरिफ की मौत की सजा बरकरार रखते हुये उसकी अपील खारिज कर दी थी। लाल किले पर हमले की घटना के सिलसिले में आरिफ को सत्र अदालत ने 22 दिसंबर, 2000 को मौत की सजा सुनाई थी, जिसकी पुष्टि दिल्ली उच्च न्यायालय ने की थी।