देश की राजधानी दिल्ली के बदरपुर में चारदीवारी से अक्सर रोशनी दिवाकर अपने हमउम्र साथियों को भागते-दौड़ते, हंसते- गाते, खेलते-खिलखिलाते जब देखती थी तो अचानक से उसकी आंखें एक जगह थम-सी जाती थीं। उसे ऐसा लगता था जैसे वो भी खेल रही है, मगर कुछ वक्त के बाद सपना टूटता तो रोशनी दोनों पैर हाथों से पकड़े आंखों से आंसू बहा रही होती थी। उसके माता-पिता हर रोज की तरह यह कहकर उसे सांत्वना देते थे कि देखना तुम्हारे पैर एक दिन बिल्कुल ठीक होंगे। दरअसल रोशनी पोलियो जैसी भयानक बीमारी से पीड़ित थी।
करीब एक दशक तक बस यही सिलसिला चलता रहता था। बस गुजारा कर सकने वाली तनख्वाह में प्राइवेट नौकरी करने वाले पिता, घर सम्भालने वाली मां, दो बेटियां जिनको लेकर घरवालों ने बहुत से ख्वाब संजोये थे मगर वो ख्वाब मोतियों की तरह उस वक्त बिखर गये जब छोटी बेटी रोशनी के कई ट्रीटमेंट से बाद पता चला कि वो जीवनभर चल-फिर नहीं सकेगी।
रोशनी के माता-पिता ने हार नहीं मानी और उन्होंने रोशनी को बहुत से डॉक्टर्स को दिखाया मगर डॉक्टर्स का कहना था कि इस इलाज में लाखों रुपयों का खर्च आएगा, इसके बावजूद यह गारंटी भी नहीं थी वह ठीक हो सकेगी। रोशनी और उसके परिवार की जिंदगी से अंधेरा हटाने के लिए समाजसेवी नारायण सेवा संस्थान आगे आया, जिसने रोशनी की जिंदगी को वाकई रोशन कर दिया।
माता-पिता को नारायण सेवा संस्थान का पता उनके जानकारों से लगा। जो खुद इस संस्थान की सेवा का अवसर उठा चुके थे। नारायण सेवा संस्थान ने उन्हें बताया गया कि आपका इलाज मुफ्त और बिल्कुल सुरक्षित रूप से किया जाएगा। करीब 4 साल पहले रोशनी अपनी बड़ी बहन के साथ नारायण सेवा संस्थान उदयपुर पहुंची। बेस्ट डॉक्टर्स के द्वारा रोशनी के दोनों पैरो की 3 सर्जरी की गई, इसके बाद रोशनी आज बैसाखी के सहारे चल-फिर सकने के साथ अपने डॉक्टर बनने के सपने को भी साकार होता देख रही है। नारायण सेवा संस्थान में डॉ अमर सिंह चुंडावत ने कहा, ‘सर्जरी काफी कठिन थी, अभी करीब तीन सर्जरी और चार साल के बाद रोशनी चल पाएगी।’