राजस्थान में दो मुसलिम महिलाओं के काजी बनने का दावा करने को लेकर हुए विवाद पर देश के प्रमुख मुसलिम संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने रविवार को कहा कि इस मामले पर विवाद गैरजरूरी है क्योंकि निकाह के लिए काजी की जरूरत नहीं है और इस्लाम में महिलाओं को किसी भी तरह की तालीम की मनाही नहीं। साथ थी संगठन ने यह भी कहा कि भारत के मुसलिम समाज ने अब भी महिलाओं को उनके पूरे अधिकार नहीं दिए हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि मुसलिम महिलाओं को उनका पूरा हक मिले।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि काजी को लेकर विवाद गैरजरूरी है क्योंकि निकाह के लिए किसी काजी की जरूरत ही नहीं है। दो गवाहों की मौजूदगी में निकाह हो सकता है। ये गवाह महिलाएं भी हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि वैसे काजी की कोई पढ़ाई नहीं होती। काजी को नियुक्त किया जाता है और यह नियुक्ति सरकार की ओर से होती है। यह व्यवस्था इस्लामी शासन में होती है, लेकिन भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि किसी को काजी नियुक्त किया जाए। ऐसी स्थिति में काजी को लेकर जो विवाद हो रहा है उसका कोई आधार नहीं है।
गौरतलब है कि हाल ही में जयपुर की दो मुसलिम महिलाएं अफरोज बेगम और जहांआरा ने दावा किया कि दोनों ने मुंबई स्थित मदरसे दारूल उलूम निसवां से दो साल की पढ़ाई की है और अब वे राजस्थान की पहली महिला काजी बन गई हैं। कुछ उलेमाओं ने यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया कि महिलाएं काजी नहीं हो सकतीं।
सलीम इंजीनियर ने कहा कि इस्लाम में महिलाओं को जायदाद में बराबर का हक दिया गया है। सामाजिक फैसलों में उनकी सलाह लेने की बात की गई है। महिलाओं को तालीम का पूरा हक दिया गया है। लेकिन हमारे समाज ने महिलाओं को अब तक इन अधिकारों से वंचित रखा है। जमात नेता ने कहा कि कुछ लोग सिर्फ विवाद पैदा करने के लिए उन मुद्दों को हवा दे रहे हैं जिनसे महिलाओं और समाज का कोई भला नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की मनाही को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ उसी क्रम में काजी के विवाद को हवा दी गई है, जबकि इसमें कोई मुद्दा ही नहीं है।