केंद्रीय पर्यावरण कानून में वर्ष 2014 में छोटी खानों के लिए पर्यावरण अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्यता करने के कारण प्रदेश की करीब 33,000 खानों में से 26,000 से अधिक खानों में एक महीने से खनन कार्य बंद होने के कारण करीब दस लाख श्रमिक ‘बेरोजगार’ हो गए हैं। वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार को खनन रायल्टी से रोजाना मिलने वाली राशि का नुकसान हो रहा है।
प्रदेश के पर्यावरणविद बाबू लाल जाजू ने कहा कि खान मालिकों ने आज तक श्रमिकों के कल्याण (चिकित्सा, शिक्षा) के लिए किया क्या है, खान मालिक जमीन का अटूट सम्पदा निकाल रहे है कम से कम नियमों की पालना तो करें। राजस्थान पत्थर विक्रेता संघ के अध्यक्ष पूरणा राम गहलोत ने कहा कि छोटी खानें बंद होने के कारण खनन कार्य से सीधे तौर से जुडे करीब चार लाख श्रमिकों और इससे अन्य कार्यों से जुडे करीब छह लाख परिवारों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान सरकार की लापरवाही और खदान आवंटियों को विश्वास में नहीं लिये जाने के कारण खदाने बंद होने के हालात उत्पन्न हुए हैं जिसकी वजह से यह हालात बने हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने खदानें बंद होने के लिए राजस्थान सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सरकार की लापरवाही के कारण यह स्थिति बनी है। राजस्थान के खान और पर्यावरण राज्यमंत्री राज कुमार रिणवां ने कहा है कि हम भी चाहते है कि बंद खदानें शीघ्र शुरू हों। इसके लिए राज्य सरकार आगामी दिनों सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी में इस प्रकरण पर होने वाली सुनवाई में बेहतर ढंग से अपना पक्ष रखेगी ताकि प्रदेश की बंद खदानों में पुन खनन कार्य आरंभ हो सके।
रिणवां ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने वर्ष 2014 में किए संशोधन में पांच हेक्टेयर से छोटी खदानों पर भी पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य कर दिया था। मंत्रालय ने तय सीमा में आने वाले खान संचालकों को मई 2016 तक प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य कर दिया था। तय तिथि तक पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं ले सकने के कारण ही प्रदेश की करीब 26,000 से अधिक इस श्रेणी की खानें बंद हैं।
उन्होंने बताया कि सरकार ने खान मालिकों एवं इसमें लगे लाखों खनन श्रमिकों को राहत देने के लिए उच्चतम न्यायालय और एनजीटी में राहत देने के लिए याचिका दायर कर रखी है। आगामी पांच जुलाई को होने वाली सुनवाई में सरकार बेहतरीन ढंग से अपना पक्ष रखेगी ताकि बंद खानों में खनन कार्य आरंभ हो सके। खान विभाग के उप सचिव अब्दुल लतीफ (पर्यावरण) ने ‘बताया कि राज्य में करीब 33,000 छोटी खदानें हैं ।इनमे से मौजूदा समय केवल 7,000 खानों में खनन हो रहा हैं। शेष बंद हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश की करीब 26,000 खदानों में एक जून से खनन कार्य बंद है।
अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि खनन के लिए पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की प्रक्रिया में सामान्यत एक से डेढ़ वर्ष लगता है। ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से वर्ष 2014 में जारी किये आदेश की अनुपालना में काफी कम खान मालिक ही प्रमाण पत्र हासिल कर सके। शेष को खनन कार्य रोकना पड़ा जिससे उसमें काम कर रहे श्रमिकों और खनन से जुडे अन्य कारोबार में लगे लोग बेरोजगार हो गए। प्रमुख पर्यावरणविद बाबू लाल जाजू ने पर्यावरण स्वीकृति अनिवार्य पर जोर देते हुए कहा कि खान मालिकों को खान एवं पर्यावरण कानून के तहत खनन कार्य के बाद हुए गड्ढों को भरने और वहां पर पेड़ लगाने चाहिए लेकिन आज तक कितने खान मालिकों ने इसे पूरा किया है।
उन्होंने कहा कि खान मालिक अटटू सम्पति निकाल कर करोड़पति हो गये लेकिन इसमें लगे लाखों श्रमिकों की आज भी बुरी स्थिति क्यों है क्या किसी ने ध्यान दिया। खान मालिक अपना घर भरते रहे और श्रमिकों के कल्याण के नाम पर कुछ नहीं किया। जाजू ने कहा कि पर्यावरण कानून को कडाई से पालना होनी चाहिए। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि खनन कार्य में गरीब तबके के लोग लगे हुए है। इनके घरों में चूल्हे तक नहीं जल रहे है। सरकार को इन श्रमिकों को राहत पंहुचाने के लिए राहत शिविर खोलकर राहत प्रदान करनी चाहिए।
