राजस्थान में जारी सियासी उठा-पटक के केन्द्र में सचिन पायलट हैं और ऐसे वक्त में बरबस ही उनके पिता राजेश पायलट का भी खूब जिक्र हो रहा है। राजेश पायलट की पहचान भी एक विद्रोही स्वभाव के नेता के तौर पर होती है और कांग्रेस पार्टी में हर असफल विद्रोह के बाद वह वापसी भी करते थे। वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने दैनिक भास्कर में लिखे अपने एक लेख में ये बात कही है। लेख में सरदेसाई ने लिखा है कि पिता-पुत्र में उग्र महत्वकांक्षा और विद्रोही तेवर एक जैसे ही हैं।
लेख के अनुसार, राजेश पायलट ने 1997 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की जगह पार्टी अध्यक्ष बनने का फैसला किया था। हालांकि वह चुनाव हार गए थे लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस में बने रहे। उसी तरह अब सचिन पायलट राजस्थान का सीएम बनने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन यह पार्टी या विचारधारा की लड़ाई नहीं है बल्कि यह व्यक्तिगत टकराव है।
राजेश पायलट लुटियन दिल्ली में वीआईपी घरों में दूध बेचने जाते थे और फिर 1980 में राजनीति में आए और फिर धीरे धीरे 1985 में राजीव गांधी की सरकार में मंत्री भी बन गए। राजेश पायलट अपने दम पर बने व्यक्ति थे। वहीं सचिन पायलट को राजनीति में एंट्री और कई अहम पद आसानी से मिल गए। सचिन, पायलट नाम के चलते 26 की उम्र में सांसद, 31 की उम्र में मंत्री, 36 की उम्र में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और 40 की उम्र में डिप्टी सीएम बन गए।
लेख में लिखा गया है कि राजेश पायलट शक्तिशाली से भी भिड़ने को तैयार रहते थे। 1992 में वह बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भाजपा के पीछे पड़े थे। इसके विपरीत सचिन भाजपा को इस्तेमाल कर गहलोत सरकार को गिराने के विचार पर आकर्षित हुए हों, इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता।
बता दें कि राजस्थान सरकार के खिलाफ बगावत करने के बाद से सचिन पायलट की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से हटाने के बाद पार्टी ने सचिन पायलट के समर्थक दो बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने का फैसला किया है। इसके साथ ही राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष ने भी सचिन पायलट और 18 अन्य बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के संबंध में नोटिस जारी किया गया है। इस नोटिस क जवाब में सचिन पायलट खेमा हाईकोर्ट चला गया है, जिस पर शुक्रवार दोपहर एक बजे सुनवाई होनी है।