राजस्थान में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है जहां एक नाबालिग के बलात्कार के मामले में दोषी सिद्ध हुए एक शख्स को 37 साल बाद नाबालिग घोषित कर दिया गया। राजस्थान के अजमेर में 11 साल की बच्ची के साथ बलात्कार के 37 साल बाद, एक व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने किशोर (Juvenile) घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों द्वारा दी गई उसकी दोषसिद्धि (Conviction) को बरकरार रखा, लेकिन उसे किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया।

अब लगभग 53 साल के हो चुके इस व्यक्ति को फरवरी 1993 में अजमेर के किशनगढ़ स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने बलात्कार और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप में दोषी ठहराया और सजा सुनाई। पिछले साल जुलाई में राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।

Supreme Court ने आरोपी को घोषित किया Juvenile

आरोपी के वकीलों ने हालांकि, सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष दावा किया कि नवंबर 1988 में हुई घटना के समय वह नाबालिग था। उन्होंने कहा कि उसकी जन्मतिथि 14 सितंबर, 1972 है इसलिए घटना के दिन उसकी उम्र 16 वर्ष 2 महीने और 3 दिन होगी। उन्होंने कहा कि चूंकि वह नाबालिग था इसलिए वर्तमान कार्यवाही, विशेषकर सज़ा कायम नहीं रह सकती।

उन्होंने यह भी प्रार्थना की थी कि उसकी उम्र निर्धारित करने के लिए जांच की जाए ताकि उसे किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 के लाभ मिल सकें।”

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किशोर होने का तर्क किसी भी अदालत में उठाया जा सकता है- सुप्रीम कोर्ट

जनवरी 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने अजमेर जिला एवं सत्र न्यायाधीश को याचिकाकर्ता के दावों की जांच करने, 8 हफ्ते में अपनी रिपोर्ट पूरी करने और अदालत को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। स्कूल में दाखिले और अन्य दस्तावेजों द्वारा सितंबर 1972 में उसकी जन्मतिथि की पुष्टि होने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया, “अतः अपीलकर्ता अपराध की तिथि पर किशोर था।”

पिछली अदालतों में चूंकि, उम्र का मुद्दा नहीं उठाया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “इस न्यायालय द्वारा पारित प्रामाणिक निर्णयों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किशोर होने का तर्क किसी भी अदालत में उठाया जा सकता है और इसे किसी भी स्तर पर, यहां तक कि मामले के निपटारे के बाद भी, स्वीकार किया जाना चाहिए।”

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “परिणामस्वरूप, निचली अदालत द्वारा दी गई और उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी गई सज़ा को रद्द करना होगा क्योंकि यह टिक नहीं सकती।” कोर्ट ने मामले को उचित आदेश पारित करने के लिए बोर्ड को भेजते हुए और उस व्यक्ति को 15 सितंबर, 2025 को बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया। पढ़ें- कोर्ट ने मां की हत्या के जुर्म में बेटे को सुनाई मौत की सजा