राजस्थान में इस महीने के आखिर में नए मुख्य सचिव की तैनाती से पहले ही सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल कर दिया है। सरकार ने 23 आइएएस अफसरों के साथ ही 225 आरएएस अफसरों को इधर से उधर कर दिया है। नए मुख्य सचिव की नियुक्ति से पहले हुए इस प्रशासनिक बदलाव ने नौकरशाही को चौंका दिया है।
राज्य में अपना आधा कार्यकाल पूरा कर चुकी भाजपा की वसुंधरा सरकार अब प्रशासनिक अमले को कसने लगी है। प्रदेश के मुख्य सचिव सीएस राजन का कार्यकाल 30 जून को पूरा हो रहा है। राजन को रिटायर होने के बाद दो बार सेवा विस्तार मिला है। नियमों के मुताबिक उन्हें अब सेवा विस्तार नहीं मिल सकता है। नए मुख्य सचिव की दौड़ में प्रदेश के दो आला आइएएस अफसर ए मुखोपाध्याय और अशोक जैन हैं। दोनों ही अभी अतिरिक्त मुख्य सचिव के तौर पर महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नए मुख्य सचिव के तौर पर सरकार के कामकाज की गति को बढ़ाने वाले अधिकारी को प्राथमिकता देंगी। मुखोपाध्याय और अशोक जैन दोनों ही मुख्यमंत्री के भरोसेमंद अधिकारी हैं। शुक्रवार देर रात किए प्रशासनिक फेरबदल से नौकरशाही में माना जा रहा है कि अब नया फेरबदल मुख्य सचिव की नियुक्ति पर ही होगा।
प्रदेश में आम तौर पर मुख्य सचिव की नियुक्ति के साथ ही बड़े पैमाने पर प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों में बदलाव किया जाता है और कई जिलों में कलेक्टर भी बदले जाते हैं। इसमें नए मुख्य सचिव की सलाह को सरकार मानती है। इस बार मुख्य सचिव की नियुक्ति से दस दिन पहले ही सरकार ने निचले स्तर के साथ ही चार जिलों में नए कलेक्टर नियुक्त कर दिए है। सरकार ने जो फेरबदल किया है उसमें सवाई माधोपुर में कैलाश चंद वर्मा को, जैसलमेर में मातादीन शर्मा को, भरतपुर में लक्ष्मी नारायण सोनी को और सीकर में कुंज बिहारी गुप्ता को नया जिला कलेक्टर बनाया गया है। इसके साथ ही कार्मिक सचिव के पद पर भास्कर सावंत को, आलोक गुप्ता को वाणिज्यक कर आयुक्त, संदीप वर्मा को सचिव पीएचईडी, नवीन महाजन को सचिव बजट, सुबीर कुमार को गृह सचिव, गिरिराज सिंह को लोक सेवा आयोग में सचिव और अंबरीश कुमार को कृषि विभाग का निदेशक बनाया है।
राज्य में सबसे बड़ा बदलाव राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अफसरों में किया गया है। इस सेवा के 225 अफसरों को एक साथ बदल दिया है। इनमें ज्यादातर एसडीएम स्तर के अफसर हैं। ये अफसर ही जमीनी स्तर पर सरकार के प्रशासन की कमान संभालते हैं। इन अफसरों के तबादलों में ही विधायक और सांसदों के साथ सत्ताधारी दल के नेताओं की रूचि रहती है। सूत्रों का कहना है कि आरएएस अफसरों की यह सूची लंबे समय से अटकी हुई थी। इसके जारी नहीं होने से ही प्रशासन का निचले स्तर का काम धीमा पड़ गया था। सरकार के राजस्व अभियान और मुख्यमंत्री जल स्वावंलबंन अभियान की कमान इन्हीं अफसरों के हाथ में रहती है।