राजस्थान के एक दर्जन से ज्यादा जिलों के किसान सूखे की घोषणा न होने से मुआवजे को लेकर तरस रहे हैं। सरकार के कामकाज के ढर्रे के कारण किसानों के सामने भूखे मरने की नौबत आ रही है। प्रदेश के नौ जिलों में तो भंयकर सूखा पड़ा है और पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो गई है। इन जिलों के करीब छह हजार गावों के किसानों की हालत बेहद खराब है और उनके सामने रोजगार के साथ ही पीने के पानी और पशुओं के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया है। हालात विकट होने के कारण अब गावों से किसानों का पलायन तक शुरू हो गया है और सरकारी लापरवाही लोगों पर भारी पड़ रही है। राज्य के नौ जिले जोधपुर, जालोर, बाड़मेर, बीकानेर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, पाली, चूरू और नागौर में इस बार करीब 20 साल बाद सूखे के हालात हो गए हैं। इन जिलों के छह हजार से ज्यादा गांवों की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। परेशान किसानों को तय नियमों के तहत मुआवजा नहीं मिल रहा है। फसलों की बर्बादी सरकार के फील्ड सर्वे में साफ तौर पर उजागर हो गई है, पर गिरदावरी की रिपोर्ट अब तक पूरी नहीं हो पाई है। गिरदावरी रिपोर्ट जब तक पूरी नहीं होगी तब तक किसानों को राहत मिलने के आसार नहीं है।
सरकार ने सितंबर में ही गिरदावरी शुरू करवा दी थी, इसके बावजूद 30 अक्तूबर तक इसकी रिपोर्ट पूरी नहीं बन पाई। आपदा प्रबंधन विभाग के नियमों के तहत सरकार सूखे की घोषणा वहीं करती है, जहां 33 फीसद से ज्यादा फसल खराब होती है। इससे कम फीसद की बर्बादी पर किसानों को मुआवजा नहीं मिलता है। किसानों का कहना है कि फसल तो 1 से 32 फीसद तक के किसानों की बर्बाद हुई है, उन्हें मुआवजा क्यों नहीं दिया जा रहा है। किसाान संगठनों का कहना है कि जिसकी भी फसल बर्बाद हुई है, उसे आनुपातिक तौर पर ही सही मुआवजा मिलना चाहिए। बरसात नहीं होने से किसानों की 10 से 30 फीसद तक फसल खराब हुई है। सूखे के लिए आपदा प्रबंधन विभाग के पास 1200 करोड़ रुपए का बजट है पर अकाल घोषित न होने के कारण यह रकम किसानों के राहत मुआवजे के लिए अटकी हुई है। अकाल संहिता के अनुसार तो 30 अक्तूबर तक जिलों में सूखा घोषित हो जाना चाहिए था। सरकारी अफसर चुनावों के कारण सूखा घोषित करने में अभी देरी की आशंका ही जता रहे है।
राजस्थान किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि इस बार बारिश न होने से प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा जिलों में तो अकाल के हालात हैं। सरकार की लापरवाही के कारण तय समय में फसल खराबे की गिरदावरी नहीं हो पाई। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड रहा है। किसानों की 80 फीसद से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई है। सरकार के आपदा विभाग के पास बजट पड़ा है पर लाल फीताशाही के कारण किसानों को मुआवजा तक नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार के प्रावधान के अनुसार किसान को प्रति हैक्टेयर साढ़े छह हजार रुपए का मुआवजा मिलता है जो कि मौजूदा हालात में बहुत कम है। सरकार को इसमें बढ़ोतरी कर किसानों की मदद को आगे आना चाहिए।
भारतीय किसान संघ के उपध्यक्ष छोगालाल सैनी का कहना है कि फसल खराब होने पर किसान को मुआवजा जरूर मिलना चाहिए। साढ़े छह हजार का मुआवजा बहुत कम है, इससे कुछ नहीं होता है। किसान को कम से कम 20 हजार रुपए प्रति हैक्टेयर का मुआवजा मिलना चाहिए। सरकार के आपदा व राहत विभाग के सचिव हेमंत कुमार गेरा का कहना है कि सूखा पड़ने पर किसानों को राहत देने की नीति केंद्र सरकार ने तय की है। इसके अनुसार 33 फीसद खराबे पर ही किसान को राहत दी जा सकती है। यह मुआवजा नहीं इनपुट सब्सिडी है। किसान को यह राशि फसल के लिए बीज बुवाई पर हुए खर्च के बदले में दी जाती है।